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"बुराँस की नई कली / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | सखी बसंत आ गया, धवल हिमवंत भा गया | ||
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+ | ये डाल-डाल झूमेगा | ||
+ | नव पात-पात घूमेगा | ||
+ | मन में आस है भरी | ||
+ | शाख सब होंगी हरी | ||
+ | एक किरण छू गई नन्ही-सी डोल कर चली | ||
+ | सखी बसंत आ गया, अम्बर-पर्यंत छा गया | ||
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+ | किवाड़ गाँव के विकल | ||
+ | झूम कर खुलेंगे कल | ||
+ | अब रंग जाएँगे बदल | ||
+ | पहाड़ सब जाएँगे संवर | ||
+ | कानों में प्रेम के मीठे बोल, बोलकर चली | ||
+ | सखी बसंत आ गया, शकुंतला-हिय दुष्यंत छा गया | ||
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09:08, 28 जून 2019 का अवतरण
बुराँस की नई कली किवाड़ खोलकर चली
सखी बसंत आ गया, दिशा-दिगंत छा गया
पहाड़ियों का यह नगर
प्रेम गीत गुनगुना रहा
मुक्त भाव नदी-निर्झर
सुर-संगीत झनझना रहा
पर्वतों के कंठ में सुवास-सुरा घोल कर चली
सखी बसंत आ गया, धवल हिमवंत भा गया
ये डाल-डाल झूमेगा
नव पात-पात घूमेगा
मन में आस है भरी
शाख सब होंगी हरी
एक किरण छू गई नन्ही-सी डोल कर चली
सखी बसंत आ गया, अम्बर-पर्यंत छा गया
किवाड़ गाँव के विकल
झूम कर खुलेंगे कल
अब रंग जाएँगे बदल
पहाड़ सब जाएँगे संवर
कानों में प्रेम के मीठे बोल, बोलकर चली
सखी बसंत आ गया, शकुंतला-हिय दुष्यंत छा गया