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"भाई हो कहांँ / विनय मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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    खत न कोई बात  
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खत न कोई बात  
    भाई हो कहांँ
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भाई हो कहांँ
  
    बहुत ऊंँची है हवेली
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बहुत ऊंँची है हवेली
    बहुत ऊंँचे लोग
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बहुत ऊंँचे लोग
    है अकेलेपन का लेकिन
+
है अकेलेपन का लेकिन
    हर किसी को रोग  
+
हर किसी को रोग  
    हर तरफ हैं
+
हर तरफ हैं
    मौत के हालात  
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मौत के हालात  
    भाई हो कहांँ
+
भाई हो कहांँ
  
      दिन, शहर की हलचलों में
+
दिन, शहर की हलचलों में
      हो गया नीलाम  
+
हो गया नीलाम  
      हादसों में डूबती है
+
हादसों में डूबती है
      ज़िन्दगी की शाम
+
ज़िन्दगी की शाम
      सिर्फ आंँसू ही मिले
+
सिर्फ आंँसू ही मिले
      सौगात  
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सौगात  
      भाई हो कहांँ
+
भाई हो कहांँ
  
      भाषणों में सभ्यता की
+
भाषणों में सभ्यता की
      बस दुहाई है  
+
बस दुहाई है  
      एक बित्ता धूप की  
+
एक बित्ता धूप की  
      खातिर लड़ाई है  
+
खातिर लड़ाई है  
      कर रहे अपने ही
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कर रहे अपने ही
      भीतर घात  
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भीतर घात  
      भाई हो कहांँ ।
+
भाई हो कहांँ ।
 
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23:40, 6 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

खत न कोई बात
भाई हो कहांँ

बहुत ऊंँची है हवेली
बहुत ऊंँचे लोग
है अकेलेपन का लेकिन
हर किसी को रोग
हर तरफ हैं
मौत के हालात
भाई हो कहांँ

दिन, शहर की हलचलों में
हो गया नीलाम
हादसों में डूबती है
ज़िन्दगी की शाम
सिर्फ आंँसू ही मिले
सौगात
भाई हो कहांँ

भाषणों में सभ्यता की
बस दुहाई है
एक बित्ता धूप की
खातिर लड़ाई है
कर रहे अपने ही
भीतर घात
भाई हो कहांँ ।