"मोहल्ले की औरतें / शोभनाथ शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मोहल्ले की औरतें | |
− | + | गली के अगले मोड़ पर | |
− | + | एक भीड़ बन कर | |
− | + | खड़ी हैं........... | |
− | + | हमारे मोहल्ले की औरतें..........। | |
− | + | मिलती हैं जब भी | |
− | + | भूलती नहीं हैं/जताना ‘अपनापन‘ | |
− | + | बात-बात में खबर देती हैं | |
− | + | उसी अनुपात में/खबर लेती भी हैं | |
− | + | ताने भी मारती हैं, | |
− | + | तो ‘मिसरी‘ की मिठास सी, | |
− | + | हर दंद में, हर फंद में | |
− | + | एक रंग हैं, ये ऽऽ...... | |
− | + | मोहल्ले की औरतें....।। | |
− | + | प्रतियोगी भाव लिये | |
− | + | अन्दर से टीसती हैं | |
− | + | पर सहज बनीं/ऐसी मुस्कराती हैं | |
− | + | सूप तो सूप है | |
− | + | चलनी को भी छलनी कर जाती हैं | |
− | + | खाते-पीते घरों की/हट्टी-कट्टी औरतें | |
+ | पल्लू सरका कर/बाहें दिखाती हैं | ||
+ | हर गली-हर मोड़ पर | ||
+ | नुमाइश बन जाती हैं । | ||
+ | ऊँचे- ऊँचे ओहदों वाले मर्दो | ||
+ | की झूठी शान बन | ||
+ | यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ | ||
+ | तितलियों सी इतराती हैं, ये ऽ........ | ||
+ | मुहल्ले की औरतें........।। | ||
− | + | अखबारों से/कम ही रिश्ता इनका होता | |
− | + | टीवी पर हर शो..........सीरियल | |
− | + | कहाँ छूटता | |
− | + | समाचार से डर लगता है -। | |
− | + | उसमें कहाँ/कौन-सा रस मिलता है | |
− | + | ‘गोधरा काण्ड‘ की सच्चाई | |
− | + | का कहाँ पता है | |
− | + | ‘नंदी ग्राम‘ में किसका बेटा....... | |
− | + | किसका पति हैं कत्ल हुआ | |
− | + | ‘देव प्रयाग‘ में कहाँ गिरी | |
− | + | पर्वत-खाईं में | |
− | + | बस में कितने मरें | |
− | + | कौन जनावें.......क्यों जानेंगी | |
− | + | ‘निठारी काण्ड‘ पर क्षण भर ही | |
− | + | हतप्रभ होती हैं.....। | |
− | + | पढ़ी-लिखी हैं | |
− | + | खूब-खूब अच्छी हैं | |
− | + | बस-थोड़ी सी ‘गड़बड़‘ है | |
− | + | अपने तक ही ‘सोच‘ लिए | |
− | + | संघर्षों से डरती हैं | |
+ | पर फिर भी अच्छी ही हैं, ऽऽऽ.... | ||
+ | ये मोहल्ले की औरतें......।। | ||
− | + | सासू माँओं पर......... | |
− | + | खर्चे की, पाई-पाई/जोड़ लगातीं | |
− | + | अपने बच्चों की खातिर | |
− | + | झूठ बोलतीं-ताना सुनतीं | |
− | + | कोल्ड ड्रिंक से फास्ट फूड तक | |
− | + | इनकी इच्छा पूरी करतीं | |
− | + | औरों के बच्चों/की ब्रिलियंसी पर | |
− | + | अक्सर चिढ़-चिढ़ जातीं | |
− | + | अन्दर-अन्दर रोती रहतीं | |
− | + | ये गठियाँ, वो गर्दन | |
− | + | भारी कूल्हों का दर्द झेलतीं | |
− | + | कथा सुनतीं-पूजा करतीं | |
− | + | कलश उठातीं | |
− | + | गहने खरीदती/महँगे सोफा-बेड़ बनवातीं | |
− | + | बाल कटातीं/मेकप करतीं | |
− | + | भिखमंगों को दुरियाती........। | |
− | + | घर-घर की बातें करतीं | |
− | + | महगाँई का रोना रोतीं/फिर भी | |
− | + | मस्त-मस्त रहती हैं, ये ऽऽ........ | |
− | + | मोहल्ले की औरतें.....।। | |
− | + | इन्हें ‘इनके‘ नामों से | |
− | + | जानने की जरूरत नहीं होती | |
− | + | ये हर वक्त फलां की मम्मी, | |
− | + | फलां की वीवी, फलां की आन्टी...... | |
− | + | बन कर रहतीं | |
− | + | स्वेटर बुनती...... | |
− | + | सीरियल देखतीं...... | |
− | + | अध्दी-कट्टी इनको भाती | |
− | + | फैशन के हर नाजुक कपड़े | |
− | + | कड़ी ठन्ड में उसे पहनतीं | |
− | + | बहू-बेटियों औ‘ बेटों की | |
− | + | हर अन्दरूनी बात छुपातीं | |
− | + | गिरती-पड़ती/चलती चलतीं | |
− | + | कब्ज बात की शिकार होती | |
+ | हरदम पस्त पस्त रहती | ||
+ | महरिन से दुगुना काम करातीं | ||
+ | किसी तरह काम निपटाती, ये ऽ ऽ.... | ||
+ | मोहल्ले की औरतें......। | ||
− | + | कोई बबुआइना, कोई सहिबाइन | |
− | + | कोई ‘ये‘ जी, कोई ‘वो‘ जी | |
− | + | आदर सूचक शब्द लगा कर | |
− | + | बड़े प्यार से बतियाती हैं | |
− | + | पर चर्चा में शामिल होते /औरों के बच्चे-बच्ची ही | |
− | + | ‘अपना तो | |
− | + | ‘अच्छा ही है/अच्छा ही होगा‘ | |
− | + | कर्ज में डूबीं | |
− | + | उन्हें डाक्टर-इंजीनियर बनातीं | |
− | + | ढ़ंीग हाँकतीं/ढ़ोल पीटती | |
− | + | झूठ बोलतीं | |
− | + | गम में डूबी..........हँसती जातीं | |
− | + | पिसती रहतीं | |
− | + | अपनों की खातिर/हर दम-हर पल | |
− | + | फिर भी............. | |
− | + | ज़िन्दा दिल लगती हैं | |
− | + | बहुत-बहुत अच्छी लगती हैं, | |
− | + | ये ऽ.....मोहल्ले की औरतें..... | |
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17:54, 8 जुलाई 2019 का अवतरण
मोहल्ले की औरतें
गली के अगले मोड़ पर
एक भीड़ बन कर
खड़ी हैं...........
हमारे मोहल्ले की औरतें..........।
मिलती हैं जब भी
भूलती नहीं हैं/जताना ‘अपनापन‘
बात-बात में खबर देती हैं
उसी अनुपात में/खबर लेती भी हैं
ताने भी मारती हैं,
तो ‘मिसरी‘ की मिठास सी,
हर दंद में, हर फंद में
एक रंग हैं, ये ऽऽ......
मोहल्ले की औरतें....।।
प्रतियोगी भाव लिये
अन्दर से टीसती हैं
पर सहज बनीं/ऐसी मुस्कराती हैं
सूप तो सूप है
चलनी को भी छलनी कर जाती हैं
खाते-पीते घरों की/हट्टी-कट्टी औरतें
पल्लू सरका कर/बाहें दिखाती हैं
हर गली-हर मोड़ पर
नुमाइश बन जाती हैं ।
ऊँचे- ऊँचे ओहदों वाले मर्दो
की झूठी शान बन
यहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ
तितलियों सी इतराती हैं, ये ऽ........
मुहल्ले की औरतें........।।
अखबारों से/कम ही रिश्ता इनका होता
टीवी पर हर शो..........सीरियल
कहाँ छूटता
समाचार से डर लगता है -।
उसमें कहाँ/कौन-सा रस मिलता है
‘गोधरा काण्ड‘ की सच्चाई
का कहाँ पता है
‘नंदी ग्राम‘ में किसका बेटा.......
किसका पति हैं कत्ल हुआ
‘देव प्रयाग‘ में कहाँ गिरी
पर्वत-खाईं में
बस में कितने मरें
कौन जनावें.......क्यों जानेंगी
‘निठारी काण्ड‘ पर क्षण भर ही
हतप्रभ होती हैं.....।
पढ़ी-लिखी हैं
खूब-खूब अच्छी हैं
बस-थोड़ी सी ‘गड़बड़‘ है
अपने तक ही ‘सोच‘ लिए
संघर्षों से डरती हैं
पर फिर भी अच्छी ही हैं, ऽऽऽ....
ये मोहल्ले की औरतें......।।
सासू माँओं पर.........
खर्चे की, पाई-पाई/जोड़ लगातीं
अपने बच्चों की खातिर
झूठ बोलतीं-ताना सुनतीं
कोल्ड ड्रिंक से फास्ट फूड तक
इनकी इच्छा पूरी करतीं
औरों के बच्चों/की ब्रिलियंसी पर
अक्सर चिढ़-चिढ़ जातीं
अन्दर-अन्दर रोती रहतीं
ये गठियाँ, वो गर्दन
भारी कूल्हों का दर्द झेलतीं
कथा सुनतीं-पूजा करतीं
कलश उठातीं
गहने खरीदती/महँगे सोफा-बेड़ बनवातीं
बाल कटातीं/मेकप करतीं
भिखमंगों को दुरियाती........।
घर-घर की बातें करतीं
महगाँई का रोना रोतीं/फिर भी
मस्त-मस्त रहती हैं, ये ऽऽ........
मोहल्ले की औरतें.....।।
इन्हें ‘इनके‘ नामों से
जानने की जरूरत नहीं होती
ये हर वक्त फलां की मम्मी,
फलां की वीवी, फलां की आन्टी......
बन कर रहतीं
स्वेटर बुनती......
सीरियल देखतीं......
अध्दी-कट्टी इनको भाती
फैशन के हर नाजुक कपड़े
कड़ी ठन्ड में उसे पहनतीं
बहू-बेटियों औ‘ बेटों की
हर अन्दरूनी बात छुपातीं
गिरती-पड़ती/चलती चलतीं
कब्ज बात की शिकार होती
हरदम पस्त पस्त रहती
महरिन से दुगुना काम करातीं
किसी तरह काम निपटाती, ये ऽ ऽ....
मोहल्ले की औरतें......।
कोई बबुआइना, कोई सहिबाइन
कोई ‘ये‘ जी, कोई ‘वो‘ जी
आदर सूचक शब्द लगा कर
बड़े प्यार से बतियाती हैं
पर चर्चा में शामिल होते /औरों के बच्चे-बच्ची ही
‘अपना तो
‘अच्छा ही है/अच्छा ही होगा‘
कर्ज में डूबीं
उन्हें डाक्टर-इंजीनियर बनातीं
ढ़ंीग हाँकतीं/ढ़ोल पीटती
झूठ बोलतीं
गम में डूबी..........हँसती जातीं
पिसती रहतीं
अपनों की खातिर/हर दम-हर पल
फिर भी.............
ज़िन्दा दिल लगती हैं
बहुत-बहुत अच्छी लगती हैं,
ये ऽ.....मोहल्ले की औरतें.....