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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=लावण्या शाह}} दीप शिखा की लौ कहती है, व्यथा कथा हर घर रहती है,<br>
कभी छिपी तो कभी मुखर बन, अश्रु हास बन बन बहती है <br>
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है ..<br>