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"शब्द / सुभाष राय" के अवतरणों में अंतर

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शब्द रोते भी नहीं
 
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उनकी दहाड़
 
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कहीं गुम हो गई है
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धार कुंद हो गई है
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मैंने शब्दों से कहा,
 
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वे लड़खड़ा गए
 
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उनकी साँस उखड़ने लगी
 
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वे जमीन पर पसर गए
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मैंने शब्दों से पूछा,
 
मैंने शब्दों से पूछा,
पंख का मतलब
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बता सकते हो
 
बता सकते हो
वे फडफडा कर गिर पड़े
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घिसटने लगे
 
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मैंने पूरी ताकत से
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बोलना चाहा
 
बोलना चाहा
पर वे जुबान पर नहीं आए
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हिम्मत नहीं रही उनमें
 
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के रूप में ढालना चाहा
 
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वे बह गए पिघलकर
 
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बदशक्ल हो गए
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मैंने उन्हें बजाना चाहा
 
मैंने उन्हें बजाना चाहा
ताकि कर सकू मुनादी
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ताकि कर सकूँ मुनादी
 
जगा सकूँ सबको
 
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उन संदिग्ध लोगों के खिलाफ
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उन सन्दिग्ध लोगों के ख़िलाफ़
 
जो कई बार रात में  
 
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देखे गए अपने शिकार तलाशते  
 
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मैंने शब्दों को गिटार
 
मैंने शब्दों को गिटार
 
बनाने की कोशिश की
 
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सोचा शायद संगीत पैदा हो
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सोचा, शायद संगीत पैदा हो
 
और मैं सब कुछ भूल जाऊँ
 
और मैं सब कुछ भूल जाऊँ
याद न रहे ठंढी पड़ती  
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दिलों की आग, बेचैनी, हताशा
 
दिलों की आग, बेचैनी, हताशा
 
याद न रहे जूलूस, नारे और
 
याद न रहे जूलूस, नारे और
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पर शब्दों ने साथ नहीं दिया
 
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मात्राएँ बिखर गईं
 
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ऊँगली फिरते ही
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टूट गए गिटार के तार
 
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मैं हैरान हूँ, परेशान नहीं
 
मैं हैरान हूँ, परेशान नहीं
मैं जानता हूँ शब्दों के खिलाफ
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मैं जानता हूँ शब्दों के ख़िलाफ़
हुईं हैं साजिशें
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हुईं हैं साज़िशें
 
उनके अर्थों से
 
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की गई है लगातार छेड़छाड़
 
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मैं जानता हूँ उन्हें भी
 
मैं जानता हूँ उन्हें भी
जो शब्दों को कमजोर, कायर
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डरपोंक बनाने में जुटे हैं
 
डरपोंक बनाने में जुटे हैं
जो शब्दों को गुलाम
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बनाना चाहते हैं
 
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उन्हें पालतू जानवरों की तरह
 
उन्हें पालतू जानवरों की तरह
बाँधकर रखना चाहते हैं
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बान्धकर रखना चाहते हैं
  
 
मुझे शब्दों के चुप हो जाने की
 
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शब्दों को नया अर्थ देना है
 
शब्दों को नया अर्थ देना है
 
जो भी बोलना चाहते हैं
 
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उन सबको आना होगा सड़क पर
 
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अपने समूचे दर्द के साथ
 
अपने समूचे दर्द के साथ
 
निर्मम यातना के बावजूद
 
निर्मम यातना के बावजूद
 
निकलना होगा दहकते रास्तों पर
 
निकलना होगा दहकते रास्तों पर
शब्दों की जिंदगी खतरे में है
+
शब्दों की ज़िन्दगी ख़तरे में है
हम सबको खतरे
+
हम सबको ख़तरे
बाँटने ही होंगें
+
बाँटने ही होंगे
 
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14:08, 26 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

शब्द हँसते नहीं
शब्द रोते भी नहीं
उनकी दहाड़
कहीं ग़ुम हो गई है
धार कुन्द हो गई है

मैंने शब्दों से कहा,
चल कर दिखाओ
वे लड़खड़ा गए
उनकी साँस उखड़ने लगी
वे ज़मीन पर पसर गए

मैंने शब्दों से पूछा,
पँख का मतलब
बता सकते हो
वे फड़फड़ा कर गिर पड़े
घिसटने लगे

मैंने पूरी ताक़त से
बोलना चाहा
पर वे ज़ुबान पर नहीं आए
हिम्मत नहीं रही उनमें

मैंने शब्दों को तलवार
के रूप में ढालना चाहा
वे बह गए पिघलकर
बदशक़्ल हो गए

मैंने उन्हें बजाना चाहा
ताकि कर सकूँ मुनादी
जगा सकूँ सबको
उन सन्दिग्ध लोगों के ख़िलाफ़
जो कई बार रात में
देखे गए अपने शिकार तलाशते
पर काम नहीं आ सके शब्द
एक ही वार में फट गए
ढोल की तरह बेकार गए

मैं फिर भी हताश नहीं हुआ
मैंने शब्दों को गिटार
बनाने की कोशिश की
सोचा, शायद संगीत पैदा हो
और मैं सब कुछ भूल जाऊँ
याद न रहे ठण्डी पड़ती
दिलों की आग, बेचैनी, हताशा
याद न रहे जूलूस, नारे और
लाठीचार्ज के हालात
पर शब्दों ने साथ नहीं दिया
मात्राएँ बिखर गईं
उँगली फिरते ही
टूट गए गिटार के तार

मैं हैरान हूँ, परेशान नहीं
मैं जानता हूँ शब्दों के ख़िलाफ़
हुईं हैं साज़िशें
उनके अर्थों से
की गई है लगातार छेड़छाड़
मैं जानता हूँ उन्हें भी
जो शब्दों को कमज़ोर, कायर
डरपोंक बनाने में जुटे हैं
जो शब्दों को ग़ुलाम
बनाना चाहते हैं
उन्हें पालतू जानवरों की तरह
बान्धकर रखना चाहते हैं

मुझे शब्दों के चुप हो जाने की
वजह पता है
मैं चुप नहीं रह सकता
मुझे अपनी पहचान खो चुके
शब्दों को नया अर्थ देना है
जो भी बोलना चाहते हैं

उन सबको आना होगा सड़क पर
अपने समूचे दर्द के साथ
निर्मम यातना के बावजूद
निकलना होगा दहकते रास्तों पर
शब्दों की ज़िन्दगी ख़तरे में है
हम सबको ख़तरे
बाँटने ही होंगे