"शब्द / सुभाष राय" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष राय |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> शब्द हँसते नहीं शब…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=सुभाष राय | |रचनाकार=सुभाष राय | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=सलीब पर सच / सुभाष राय |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
शब्द रोते भी नहीं | शब्द रोते भी नहीं | ||
उनकी दहाड़ | उनकी दहाड़ | ||
− | कहीं | + | कहीं ग़ुम हो गई है |
− | धार | + | धार कुन्द हो गई है |
मैंने शब्दों से कहा, | मैंने शब्दों से कहा, | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
वे लड़खड़ा गए | वे लड़खड़ा गए | ||
उनकी साँस उखड़ने लगी | उनकी साँस उखड़ने लगी | ||
− | वे | + | वे ज़मीन पर पसर गए |
मैंने शब्दों से पूछा, | मैंने शब्दों से पूछा, | ||
− | + | पँख का मतलब | |
बता सकते हो | बता सकते हो | ||
− | वे | + | वे फड़फड़ा कर गिर पड़े |
घिसटने लगे | घिसटने लगे | ||
− | मैंने पूरी | + | मैंने पूरी ताक़त से |
बोलना चाहा | बोलना चाहा | ||
− | पर वे | + | पर वे ज़ुबान पर नहीं आए |
हिम्मत नहीं रही उनमें | हिम्मत नहीं रही उनमें | ||
पंक्ति 32: | पंक्ति 32: | ||
के रूप में ढालना चाहा | के रूप में ढालना चाहा | ||
वे बह गए पिघलकर | वे बह गए पिघलकर | ||
− | + | बदशक़्ल हो गए | |
मैंने उन्हें बजाना चाहा | मैंने उन्हें बजाना चाहा | ||
− | ताकि कर | + | ताकि कर सकूँ मुनादी |
जगा सकूँ सबको | जगा सकूँ सबको | ||
− | उन | + | उन सन्दिग्ध लोगों के ख़िलाफ़ |
जो कई बार रात में | जो कई बार रात में | ||
देखे गए अपने शिकार तलाशते | देखे गए अपने शिकार तलाशते | ||
पंक्ति 47: | पंक्ति 47: | ||
मैंने शब्दों को गिटार | मैंने शब्दों को गिटार | ||
बनाने की कोशिश की | बनाने की कोशिश की | ||
− | सोचा शायद संगीत पैदा हो | + | सोचा, शायद संगीत पैदा हो |
और मैं सब कुछ भूल जाऊँ | और मैं सब कुछ भूल जाऊँ | ||
− | याद न रहे | + | याद न रहे ठण्डी पड़ती |
दिलों की आग, बेचैनी, हताशा | दिलों की आग, बेचैनी, हताशा | ||
याद न रहे जूलूस, नारे और | याद न रहे जूलूस, नारे और | ||
पंक्ति 55: | पंक्ति 55: | ||
पर शब्दों ने साथ नहीं दिया | पर शब्दों ने साथ नहीं दिया | ||
मात्राएँ बिखर गईं | मात्राएँ बिखर गईं | ||
− | + | उँगली फिरते ही | |
टूट गए गिटार के तार | टूट गए गिटार के तार | ||
मैं हैरान हूँ, परेशान नहीं | मैं हैरान हूँ, परेशान नहीं | ||
− | मैं जानता हूँ शब्दों के | + | मैं जानता हूँ शब्दों के ख़िलाफ़ |
− | हुईं हैं | + | हुईं हैं साज़िशें |
उनके अर्थों से | उनके अर्थों से | ||
की गई है लगातार छेड़छाड़ | की गई है लगातार छेड़छाड़ | ||
मैं जानता हूँ उन्हें भी | मैं जानता हूँ उन्हें भी | ||
− | जो शब्दों को | + | जो शब्दों को कमज़ोर, कायर |
डरपोंक बनाने में जुटे हैं | डरपोंक बनाने में जुटे हैं | ||
− | जो शब्दों को | + | जो शब्दों को ग़ुलाम |
बनाना चाहते हैं | बनाना चाहते हैं | ||
उन्हें पालतू जानवरों की तरह | उन्हें पालतू जानवरों की तरह | ||
− | + | बान्धकर रखना चाहते हैं | |
मुझे शब्दों के चुप हो जाने की | मुझे शब्दों के चुप हो जाने की | ||
पंक्ति 77: | पंक्ति 77: | ||
शब्दों को नया अर्थ देना है | शब्दों को नया अर्थ देना है | ||
जो भी बोलना चाहते हैं | जो भी बोलना चाहते हैं | ||
+ | |||
उन सबको आना होगा सड़क पर | उन सबको आना होगा सड़क पर | ||
अपने समूचे दर्द के साथ | अपने समूचे दर्द के साथ | ||
निर्मम यातना के बावजूद | निर्मम यातना के बावजूद | ||
निकलना होगा दहकते रास्तों पर | निकलना होगा दहकते रास्तों पर | ||
− | शब्दों की | + | शब्दों की ज़िन्दगी ख़तरे में है |
− | हम सबको | + | हम सबको ख़तरे |
− | बाँटने ही | + | बाँटने ही होंगे |
</poem> | </poem> |
14:08, 26 जुलाई 2019 के समय का अवतरण
शब्द हँसते नहीं
शब्द रोते भी नहीं
उनकी दहाड़
कहीं ग़ुम हो गई है
धार कुन्द हो गई है
मैंने शब्दों से कहा,
चल कर दिखाओ
वे लड़खड़ा गए
उनकी साँस उखड़ने लगी
वे ज़मीन पर पसर गए
मैंने शब्दों से पूछा,
पँख का मतलब
बता सकते हो
वे फड़फड़ा कर गिर पड़े
घिसटने लगे
मैंने पूरी ताक़त से
बोलना चाहा
पर वे ज़ुबान पर नहीं आए
हिम्मत नहीं रही उनमें
मैंने शब्दों को तलवार
के रूप में ढालना चाहा
वे बह गए पिघलकर
बदशक़्ल हो गए
मैंने उन्हें बजाना चाहा
ताकि कर सकूँ मुनादी
जगा सकूँ सबको
उन सन्दिग्ध लोगों के ख़िलाफ़
जो कई बार रात में
देखे गए अपने शिकार तलाशते
पर काम नहीं आ सके शब्द
एक ही वार में फट गए
ढोल की तरह बेकार गए
मैं फिर भी हताश नहीं हुआ
मैंने शब्दों को गिटार
बनाने की कोशिश की
सोचा, शायद संगीत पैदा हो
और मैं सब कुछ भूल जाऊँ
याद न रहे ठण्डी पड़ती
दिलों की आग, बेचैनी, हताशा
याद न रहे जूलूस, नारे और
लाठीचार्ज के हालात
पर शब्दों ने साथ नहीं दिया
मात्राएँ बिखर गईं
उँगली फिरते ही
टूट गए गिटार के तार
मैं हैरान हूँ, परेशान नहीं
मैं जानता हूँ शब्दों के ख़िलाफ़
हुईं हैं साज़िशें
उनके अर्थों से
की गई है लगातार छेड़छाड़
मैं जानता हूँ उन्हें भी
जो शब्दों को कमज़ोर, कायर
डरपोंक बनाने में जुटे हैं
जो शब्दों को ग़ुलाम
बनाना चाहते हैं
उन्हें पालतू जानवरों की तरह
बान्धकर रखना चाहते हैं
मुझे शब्दों के चुप हो जाने की
वजह पता है
मैं चुप नहीं रह सकता
मुझे अपनी पहचान खो चुके
शब्दों को नया अर्थ देना है
जो भी बोलना चाहते हैं
उन सबको आना होगा सड़क पर
अपने समूचे दर्द के साथ
निर्मम यातना के बावजूद
निकलना होगा दहकते रास्तों पर
शब्दों की ज़िन्दगी ख़तरे में है
हम सबको ख़तरे
बाँटने ही होंगे