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{{KKRachna
|रचनाकार=सुभाष राय
|संग्रह= सलीब पर सच / सुभाष राय
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चिड़ियों की उड़ान उदास कर देती है
अपने कन्धों पर महसूस करता हूँ
झड़ गए पंखों पँखों के निशान
गहरे घाव की तरह
मुझे याद है धरती पर बिखरे
सुख-सौन्दर्य के लालच में
मैंने ही अपने पंख पँख कतर डालेबाँध बान्ध लिया अपने आप को मुरझा जाने वाले फूलों की पंखडियों पँखड़ियों से
समय के साथ ख़त्म हो जाने वाली
मेरे मन में धरती पर उगने की
ऐसी आकांक्षा आकाँक्षा जगी
कि मैं रोक नहीं सका अपने आप को
उगा तो पर अब उड़ान कहाँ