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"आश्वास / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर
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19:52, 15 अगस्त 2008 के समय का अवतरण
- घने कुहरे ने
- ढक लिया आकाश,
- घने कुहरे ने
- भर लिया आकाश !
- घने कुहरे ने
- रास्ते सब बन्द हैं,
- जीवन निस्पन्द है !
- कितना
- सिकुड़ गया है क्षितिज —
- चारों ओर का विस्तृत क्षितिज !
- धुँधले पर्यावरण में
- क़ैद हैं हम,
- कितना विषम है
- समय की सातत्यता का क्रम !
- रास्ते सब बन्द हैं,
- ध्वनि-तरंगें रुद्ध हैं,
- समूची चेतना
- भयावह वातावरण में बद्ध है,
- सब तरफ़
- मात्रा एक
- स्थिर अलस मूकता का राज है,
- स्तम्भित
- सहमा हुआ
- समस्त समाज है।
- सुनो
- मैं आता हूँ,
- सूरज की तरह आता हूँ !
- दृष्टि का आलोक
- मेरे पास है,
- आत्म-शक्ति का
- अक्षय विश्वास है !
- ध्वनि-तरंगें रुद्ध हैं,
- अँधेरे के
- कुहरे के
- पर्वतों को ढहा दूंगा !
- मार्ग-रोधक
- सब बहा दूंगा !
- अँधेरे के
- आकाश
- फिर गूँजेगा,
- नाना ध्वनियों से गूँजेगा !
- प्रकाश
- फिर फैलेगा,
- उमड़ता
- लहरता
- धारा-प्रवाह
- प्रकाश फैलेगा।
- आकाश