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"निरभ्र नभ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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तो तपन बुझाएँ । | तो तपन बुझाएँ । | ||
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| + | बरसों था सँभाला | ||
| + | पीस ही डाला | ||
| + | कुछ निपट अंधे, | ||
| + | अकर्ण साथ बँधे। | ||
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| + | काई -सी छँटी | ||
| + | अपनों की भीड़ भी | ||
| + | छूटा नीड़ भी | ||
| + | एक तेरा आँचल | ||
| + | एकमात्र सम्बल। | ||
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| + | तोड़ने चले | ||
| + | जीवन के घरौंदे | ||
| + | ज्वार -से उठे | ||
| + | पैरों तले रौंदने | ||
| + | खुद ही मिट गए। | ||
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| + | चले जाएँगे, | ||
| + | याद यह रखना | ||
| + | अंकुर हम | ||
| + | तुम लाख रौंदना | ||
| + | फिर उग आएँगे। | ||
00:02, 24 अगस्त 2019 का अवतरण
33
निरभ्र नभ
शैलशृंग चूमते
प्रतीक्षातुर
दो घूँट मिल जाएँ
तो तपन बुझाएँ ।
34
मोती- सा मन
बरसों था सँभाला
पीस ही डाला
कुछ निपट अंधे,
अकर्ण साथ बँधे।
35
काई -सी छँटी
अपनों की भीड़ भी
छूटा नीड़ भी
एक तेरा आँचल
एकमात्र सम्बल।
36
तोड़ने चले
जीवन के घरौंदे
ज्वार -से उठे
पैरों तले रौंदने
खुद ही मिट गए।
37
चले जाएँगे,
याद यह रखना
अंकुर हम
तुम लाख रौंदना
फिर उग आएँगे।

