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आलिंगन तरसे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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11:32, 2 दिसम्बर 2019
मिलता कहाँ मन
जग- निर्जन वन।
32
गुलाबी नभ
करतल किसी का
पढ़ा औचक
नाम था लिखा मेरा
अग-जग उजेरा।
</poem>
वीरबाला
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