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मन करता है / कीर्ति चौधरी

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|रचनाकार=कीर्ति चौधरी
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मन करता है
 
झर जाते हैं शब्द हृदय में
उन्हें समेटूँ,तुमको देदूँ
मन करता है।     {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कीर्ति चौधरी}} प्यार की बातें   आअो करें प्यार की बातें दिल जैसे घबराता है कैसे-कैसे संशय उठते क्या-क्या मन में आता है   छूट न जाए साथ जतन से जिसको हमने जोड़ा था पाने को सान्निध्य तुम्हारा क्या-क्या छोड़ा-जोड़ा था   समय हमारे बीच बैठकर टाँक गया कहनी-अनकहनी भूलें की थी,दर्प किया था चोटें की थी अौर सहा था   आअो उसे मिटाएँ फिर से लिखें कहानी उन यादों की भूली-बिसरी बातें मेरी अौर तुम्हारी जिनसे शुरु किया था जीवन फिर दुहराएँ   आअो करें प्यार की बातें ।     {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कीर्ति चौधरी}} फूल झर गए   फूल झर गए।   क्षण-भर की ही तो देरी थी अभी-अभी तो दृष्टि फेरी थी- इतने में सौरभ के प्राण हर गए; फूल झर गए।   दिन-दो दिन जीने की बात थी, आख़िर तो खानी ही मात थी; फिर भी मुरझाए तो व्यथा भर गए- फूल झर गए।   तुमको अौí मुझको भी जाना है- सृष्टि का अटल विधान माना है; लौटे कब प्राण गेह बाहर गए- फूल झर गए।   फूलों सम आअो हँस हम भी झरें रंगों के बीच ही जिएँ अौí मरें पुष्प अरे गए किंतु खिलकर गए-   फूल झर गए।
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