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"गंध अनाम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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सागर में मिलतीं | सागर में मिलतीं | ||
सरिता जैसे। | सरिता जैसे। | ||
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+ | जीवन क्रूर | ||
+ | दुःख गलियों घूमें | ||
+ | सुख थे दूर। | ||
+ | 188 | ||
+ | आरोप लाखों | ||
+ | मंजूर सब किए | ||
+ | झूठे थे सारे। | ||
+ | 189 | ||
+ | दर्द लिपटे | ||
+ | बाहर व भीतर | ||
+ | जीना दूभर। | ||
+ | 190 | ||
+ | अंधों ने दिया | ||
+ | दर्पण टूटा हुआ | ||
+ | रूप न दिखा। | ||
+ | 191 | ||
+ | जाएँगे कहाँ | ||
+ | न घर, न है द्वार | ||
+ | सूना संसार। | ||
+ | 192 | ||
+ | देवता जन्मा | ||
+ | असुर बना डाला | ||
+ | धन्य हैं लोग।( 23-12-19) | ||
+ | 193 | ||
+ | चाय की प्याली | ||
+ | कैसे अधर धरूँ मै | ||
+ | है कोसों दूर | ||
+ | -0-15-12-2019 | ||
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19:14, 25 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण
182
गंध अनाम
दे जाती चुपके से
तेरा पैग़ाम।
183
प्राणों में घुले
अलग करूँ कैसे
तुम्हारा नाम ।
184
टूटा घोंसला
न तोड़ चिड़िया का
आँधी हौसला।
185
पूजा के मन्त्र
बदल नहीं पाए
छल का तन्त्र।
186
कभी तो मिलो
सागर में मिलतीं
सरिता जैसे।
187
जीवन क्रूर
दुःख गलियों घूमें
सुख थे दूर।
188
आरोप लाखों
मंजूर सब किए
झूठे थे सारे।
189
दर्द लिपटे
बाहर व भीतर
जीना दूभर।
190
अंधों ने दिया
दर्पण टूटा हुआ
रूप न दिखा।
191
जाएँगे कहाँ
न घर, न है द्वार
सूना संसार।
192
देवता जन्मा
असुर बना डाला
धन्य हैं लोग।( 23-12-19)
193
चाय की प्याली
कैसे अधर धरूँ मै
है कोसों दूर
-0-15-12-2019