भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ग़म न कर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
दुआओं का असर हो न हो यह तो मुमकिन | दुआओं का असर हो न हो यह तो मुमकिन | ||
बद्दुआएँ मगर कभी पीछा न छोड़ती । | बद्दुआएँ मगर कभी पीछा न छोड़ती । | ||
+ | 7 | ||
+ | बद्दुआएँ तो थीं हज़ारों हमारी हस्ती मिटाने को | ||
+ | ये तेरी ही दुआ होगी,जो तूफ़ाँ से बचाने निकली । | ||
<poem> | <poem> |
07:28, 2 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण
1
दर्द कहाँ है यह पूछना फ़िजूल
पूछिए यह कि कहाँ नहीं है दर्द।
2
हम तो वफ़ा करके पछताए ताउम्र
उन्हें बेवफाई का ज़रा मलाल नहीं।
3
कभी पूछना न झील कि अब तक कहाँ रहा
डूबता जब दिल तुम्हारे पास आता हूँ।
4
ग़म न कर कि पत्ते सब गए हैं छोड़कर।
कल आएगी बहार सब लौट आएँगे।
5
सूख गए पर साथ नहीं छोड़ा है आज तक
बुरे दिनों के दोस्त हैं ,जाते भी तो कैसे।
6
दुआओं का असर हो न हो यह तो मुमकिन
बद्दुआएँ मगर कभी पीछा न छोड़ती ।
7
बद्दुआएँ तो थीं हज़ारों हमारी हस्ती मिटाने को
ये तेरी ही दुआ होगी,जो तूफ़ाँ से बचाने निकली ।