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"पृथ्वी का रोष! / कुँवर दिनेश" के अवतरणों में अंतर

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(' 1. क्यों रोना आया? थम गया संसार, कोरोना आया। 2. आए न को...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
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18:53, 22 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

1.
क्यों रोना आया?
थम गया संसार,
कोरोना आया।
2.
आए न कोई
एक-दूजे के पास
जाए न कोई।
3.
है मजबूरी
अपने पराए से
रखना दूरी।
4.
मिला ना हाथ,
तू बस दूर ही से
हिलाना हाथ।
5.
दुनिया रुकी
वायरस के आगे
दुनिया झुकी।
6.
घमण्ड चूर,
मानव से मानव
हुआ है दूर।
7.
क्या हो भविष्य?
मुश्किल है लड़ाई,
शत्रु अदृश्य।
8.
कमरे तक!
सिमटा है जीवन―
अपने तक!
9.
बना था ख़ुदा
इन्सान ख़ुद ही से
हुआ है जुदा।
10.
कोरोना रोग
अपना या पराया
शक़ में लोग।
11.
खाली सड़कें
चिड़ियों के दल भी
खुले में उड़ें।
12.
लॉकडाउन:
शुद्ध हुई है हवा,
स्वच्छ टाउन!
13.
सहमा, डरा―
आदमी ने छिपाया
निज चेहरा।
14.
शान्ति पसरी,
चिड़ियों की चहक
मिठास भरी!
15.
धुआँ जो हटा,
सुदूर का पर्वत
सुन्दर दिखा!
16.
स्वच्छ हवा में
चिड़ियों की टोलियाँ
उन्मत्त उड़ें।
17.
गौरैया आई,
खाली सड़क देख
छटपटाई!
18.
डरा आदमी!
छिपा-छिपा घर में
आज़ाद पंछी!
19.
लॉकडाउन:
चिड़ियों के क़ब्ज़े में
सारा टाउन!
20.
मन्दिर बंद,
मन के मंदिर में
मिले आनन्द!
21.
रुका शहर:
उतर आए पंछी
सड़कों पर।
22.
जी भरमाए!
कोई आए न जाए―
कागा क्यों आए?
23.
धरती माता!
मानवता की यही
भाग्य विधाता!
24.
उड़े हैं होश!
कोरोना का प्रकोप―
पृथ्वी का रोष!
25.
बचाएँ पृथ्वी!
पीढ़ियों का सहारा,
स्वर्ग है यही!



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