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"है तो है / दीप्ति मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है | वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है | ||
− | ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से बगावत है तो है | + | ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से, बगावत है तो है |
सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया | सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया | ||
− | अब ज़माने की नज़र में ये हिमाकत है तो है | + | अब ज़माने की नज़र में, ये हिमाकत है तो है |
कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे | कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे | ||
− | + | ग़ैर न हो जाये वो बस, इतनी हसरत है तो है | |
− | जल गया परवाना तो शम्मा की | + | जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या खता |
− | रात भर जलना-जलाना उसकी किस्मत है तो है | + | रात भर जलना-जलाना, उसकी किस्मत है तो है |
− | दोस्त बन कर | + | दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे |
− | फ़िर भी उस जालिम पे मरना अपनी फ़ितरत है तो है | + | फ़िर भी उस जालिम पे मरना, अपनी फ़ितरत है तो है |
दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ | दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ | ||
− | दूरियों के बाद भी दोनों में कुर्बत है तो है | + | दूरियों के बाद भी, दोनों में कुर्बत है तो है |
20:37, 8 सितम्बर 2008 का अवतरण
वो नहीं मेरा मगर उससे मुहब्बत है तो है
ये अगर रस्मों, रिवाज़ों से, बगावत है तो है
सच को मैने सच कहा, जब कह दिया तो कह दिया अब ज़माने की नज़र में, ये हिमाकत है तो है
कब कहा मैनें कि वो मिल जाये मुझको, मै उसे ग़ैर न हो जाये वो बस, इतनी हसरत है तो है
जल गया परवाना तो शम्मा की इसमें क्या खता रात भर जलना-जलाना, उसकी किस्मत है तो है
दोस्त बन कर दुश्मनों-सा वो सताता है मुझे फ़िर भी उस जालिम पे मरना, अपनी फ़ितरत है तो है
दूर थे और दूर हैं हरदम ज़मीनों-आसमाँ दूरियों के बाद भी, दोनों में कुर्बत है तो है