भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"तुम बिन यह मौसम / रवीन्द्र भ्रमर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र भ्रमर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 26: पंक्ति 26:
 
यह मौसम कितना उदास लगता है —
 
यह मौसम कितना उदास लगता है —
 
तुम बिन !
 
तुम बिन !
+
 
 +
नई हवा की छुवन
 +
बोल पंछी के नए नए
 +
सब कुरदते याद तुम्हारी
 +
मन पर सब उनये;
 +
 
 +
यह मौसम कितना उदास लगता है —
 +
तुम बिन !
 
</poem>
 
</poem>

02:31, 29 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

तुम बिन !
यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !

घर पीछे तालाब
उगे हैं लाल कमल के ढेर
तुम आँखों में उग आई हो
प्रात गन्ध की बेर;

यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !

झर-झर हरसिंगार झरते हैं
पवन पुलक के भार
हार गूँथ लूँ, किन्तु
करूँ किस वेणी का शृँगार;

यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !

नई हवा की छुवन
बोल पंछी के नए नए
सब कुरदते याद तुम्हारी
मन पर सब उनये;

यह मौसम कितना उदास लगता है —
तुम बिन !