भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आई.सी.यू. / नोमान शौक़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: MERCY KILLING पर लिखना चाहता हूं<br /> एक सुंदर सी कविता<br /> यहां बैठकर <br /> लेकि...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
MERCY KILLING पर लिखना चाहता हूं<br />
 
MERCY KILLING पर लिखना चाहता हूं<br />
 
एक सुंदर सी कविता<br />
 
एक सुंदर सी कविता<br />
यहां बैठकर <br />
+
यहां बैठकर<br />  
 
लेकिन मैं कर नहीं पा रहा<br />
 
लेकिन मैं कर नहीं पा रहा<br />
 
उस मार्मिक सौन्दर्य की अनुभूति<br />
 
उस मार्मिक सौन्दर्य की अनुभूति<br />
पंक्ति 28: पंक्ति 28:
 
उनके सीने में धंसी ज़ंग लगी कील पर<br />
 
उनके सीने में धंसी ज़ंग लगी कील पर<br />
 
किसी को पहली बार देख रहे हैं<br />
 
किसी को पहली बार देख रहे हैं<br />
इस तरह छटपटाते हुए<br />  
+
इस तरह छटपटाते हुए <br />
  
 
नहीं आयेगा डॉक्टर<br />
 
नहीं आयेगा डॉक्टर<br />

16:38, 13 सितम्बर 2008 का अवतरण

MERCY KILLING पर लिखना चाहता हूं
एक सुंदर सी कविता
यहां बैठकर
लेकिन मैं कर नहीं पा रहा
उस मार्मिक सौन्दर्य की अनुभूति
जो किसी लाश के चेहरे पर बिखरी
ज़र्द मासूमियत को
सुनसान आंखों से सहलाने के बाद होती है

मानस पटल पर बनने वाले बिम्ब के
चीथडे क़र देती हैं
परिजनों के विलाप से उठने वाली
ध्वनि तरंगें

दर्द से तड़पते मरीज़ की
कोई दुनिया नहीं होती
ख़ूबसूरत नर्सें कम नहीं कर सकतीं
पेशानी पर झूलती लटों से
ब्रेन टयूमर से होने वाले दर्द को
जब मरीज़ आखिरी गांठ खोल रहा हो
बची खुची सांसों से बंधी पोटली की

तैयार बैठे हैं सगे-सम्बंधी
डॉक्टर और यमदूत से झगड़ने के लिए
बौखलाए फिरते हैं इधर-उधर
गौण हो गया है सबकुछ
पृथ्वी घूम रही है
उनके सीने में धंसी ज़ंग लगी कील पर
किसी को पहली बार देख रहे हैं
इस तरह छटपटाते हुए

नहीं आयेगा डॉक्टर
जब तक चाय की एक घूंट भी
बची है उसकी प्याली में
अति भावुकता, संवेदनशीलता
कैसे हो सकता है एक डॉक्टर का धर्म
आते ही रहते हैं अस्पताल में
ऐसे मरीज़ हर रोज़

ऐसा नहीं होना चाहिये
मेरी कविता का अंत
एहसास है मुझे भी
लेकिन क्या करूं
चाय में गिरी हुई मक्खी अब मर चुकी है !