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− | + | सोचो उन नन्हे-नन्हे | |
− | + | क्रान्तिबीजों के बारे में | |
− | + | संपादक के नाम की चिठ्ठियों में | |
− | + | जो अँकुरते हैं बस पत्ती-भर! | |
− | + | नाराज़गी की एक लुप्तप्राय प्रजाति के बारे में | |
− | + | सोचो तो | |
− | + | सोचो उन मीठे उलाहनों की | |
− | + | जो लोग देते थे | |
− | + | मिले हुए अर्सा हो जाने पर! | |
− | + | तूफ़ान | |
− | + | प्यालों में भी | |
− | + | मचते हैं जो | |
− | + | वे ऐसे उद्दीप्त होते हैं | |
− | + | जैसे चुम्बन | |
− | + | नींद से माती आँखों पर | |
− | + | भोर के पहले पहर! | |
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16:47, 29 मई 2020 का अवतरण
उस उत्साह की सोचो
जिससे कि लोग
फ़रमाइशी चिट्ठियाँ लिखते हैं विविध भारती को!
सोचो उन नन्हे-नन्हे
क्रान्तिबीजों के बारे में
संपादक के नाम की चिठ्ठियों में
जो अँकुरते हैं बस पत्ती-भर!
नाराज़गी की एक लुप्तप्राय प्रजाति के बारे में
सोचो तो
सोचो उन मीठे उलाहनों की
जो लोग देते थे
मिले हुए अर्सा हो जाने पर!
तूफ़ान
प्यालों में भी
मचते हैं जो
वे ऐसे उद्दीप्त होते हैं
जैसे चुम्बन
नींद से माती आँखों पर
भोर के पहले पहर!