भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुरंग में बुझती लालटेन / नोमान शौक़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: जब क़त्ल होता है<br /> एक निर्दोष इन्सान का<br /> निकल आते हैं<br /> उसके ख़ू...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=नोमान शौक़
 +
}}
 +
 
जब क़त्ल होता है<br />
 
जब क़त्ल होता है<br />
 
एक निर्दोष इन्सान का<br />
 
एक निर्दोष इन्सान का<br />
पंक्ति 6: पंक्ति 11:
 
और निर्लज्ज बलात्कारी<br />
 
और निर्लज्ज बलात्कारी<br />
  
ये हत्याएं करते हैं<br />
+
ये हत्याएँ करते हैं<br />
 
(कुछ लोग चूमते हैं<br />
 
(कुछ लोग चूमते हैं<br />
 
इनके ख़ून से रंगे हाथों को)<br />
 
इनके ख़ून से रंगे हाथों को)<br />

23:57, 13 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण

जब क़त्ल होता है
एक निर्दोष इन्सान का
निकल आते हैं
उसके ख़ून की हर बूंद से
बेशुमार हत्यारे,शातिर लुटेरे
और निर्लज्ज बलात्कारी

ये हत्याएँ करते हैं
(कुछ लोग चूमते हैं
इनके ख़ून से रंगे हाथों को)
और खोल कर रख देते हैं
दुनिया के किसी भी कोने से उठाए गए
धर्मग्रन्थ का कोई पुराना नुस्ख़ा
आपके सामने

ये लूटते हैं
दुकानों, मकानों, खेतों खलिहानों को
और आपके हाथ बांधकर
लिटा देते हैं पेट के बल
किसी तारीख़ी मुजस्समे के सामने

ये निर्वस्त्र करते हैं
अधनंगी लड़कियों को पूरी तरह
दाग़ते हैं जलती हुई सिगरेट से
उनके छुए अनछुए अंगों को
और चले जाते हैं
शून्य की अवस्था में,
परमात्मा में विलीन होने
फिर थोड़ी देर बाद
पाए जाते हैं बातें करते हुए
फ़्रायड के फ़लसफ़े पर
किसी काफ़ी होम या पब में

आपको अधिकार है
इनसे जी भर के नफ़रत करने का
लेकिन
ये आम हत्यारे,आम लुटेरे
और आम बलात्कारी नहीं
जिनके पास कोई तर्क नहीं होता
अपने दुष्कृत्यों का औचित्य बताने के लिए !