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"भुट्टा और ज़िन्दगी / प्रियंका गुप्ता" के अवतरणों में अंतर
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+ | फ़ेंक देना है | ||
+ | दूर किसी कोने में | ||
+ | भुट्टा ज्यों पके | ||
+ | खाने लायक बने | ||
+ | वैसे ही मानो | ||
+ | ज़िन्दगी पकी -भुनी | ||
+ | हर हाल में | ||
+ | जीने लायक बनी | ||
+ | खुश रहना | ||
+ | हमें सिखला जाती | ||
+ | राह दिखला जाती। | ||
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20:07, 13 जून 2020 के समय का अवतरण
भुट्टे के जैसी
होती है ज़िन्दगी भी
कभी कड़क
तो कभी नर्म, मीठी
वक़्त की आँच
इसे भूना करती
नमक-मिर्च
दुनिया लगा देती
अब यह तो
हम तय करते
खाना है इसे
स्वाद लेकर; या तो
फ़ेंक देना है
दूर किसी कोने में
भुट्टा ज्यों पके
खाने लायक बने
वैसे ही मानो
ज़िन्दगी पकी -भुनी
हर हाल में
जीने लायक बनी
खुश रहना
हमें सिखला जाती
राह दिखला जाती।