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"किरणें / पवन चौहान" के अवतरणों में अंतर
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रोज खिड़की से अंदर आती हैं | रोज खिड़की से अंदर आती हैं | ||
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मैं उस दिन उदास हो जाता हूँ | मैं उस दिन उदास हो जाता हूँ | ||
जिस रोज वे नहीं आतीं | जिस रोज वे नहीं आतीं |
20:36, 2 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
मंद-मंद मुस्कुराती किरणें
मधुर मुस्कान बिखराती हुई
मेरे आँगन में आकर
उजाला करके घर में मेरे
आज सवेरे-सवेरे
रोज खिड़की से अंदर आती हैं
जाली से छनकर
शीशे को चीर मुझे जगा जाती हैं
मैं उस दिन उदास हो जाता हूँ
जिस रोज वे नहीं आतीं
और एक माँ की तरह चूमकर
मुझे नहीं जगाती
मुझे किरणों की अठखेलियां लुभाती हैं
जब भी मेरे पास आती हैं
नया सवेरा लाती हैं
आज...
आँखों पर पड़ते ही
नींद मेरी खुलते ही
किरणें हँस पड़ीं
बोली- हैलो, क्या हाल है?
मैं अंगड़ाई लेकर हँस पड़ा
बोला- आइए, आपका स्वागत है!