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{{KKRachna
|रचनाकार=विजयशंकर चतुर्वेदी
|अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKAnthologyVarsha}}{{KKCatKavita}}<poem>बहुत गुजरना है समय 
दसों दिशाओं को रहना है अभी यथावत
 
खनिज और तेल भरी धरती
 
घूमती रहनी है बहुत दिनों तक
 
वनस्पतियों में बची रहनी हैं औषधियाँ
 
चिरई-चुनगुन लौटते रहने हैं घोंसलों में हर शाम
 
परियाँ आती रहनी हैं हमारे सपनों में बेखौफ
 
बहुत हुआ तो किस्से-कहानियों में घुसे रहेंगे सम्राट
 
पर उनका रक्तपात रहना है सनद
 
और वक्त पर हमारे काम आना है
 
बहुत गुजरना है समय।
</poem>
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