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"नये घन / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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लाये कौन सँदेश नये घन ! <br>
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अम्बर गर्वित <br>
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लाये कौन सँदेश नये घन !
हो आया नत, <br>
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अम्बर गर्वित
चिर निस्पन्द हृदय में उसके <br>
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हो आया नत,
उमड़े री पलकों के सावन ! <br><br>
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चिर निस्पन्द हृदय में उसके
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उमड़े री पलकों के सावन !
  
लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
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चौंकी निद्रित, <br>
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चौंकी निद्रित,
रजनी अलसित <br>
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रजनी अलसित
श्यामल पुलकित कम्पित कर में <br>
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श्यामल पुलकित कम्पित कर में
दमक उठे विद्युत् के कंकण ! <br>
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दमक उठे विद्युत् के कंकण !
लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
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लाये कौन सँदेश नये घन !
  
दिशि का चंचल, <br>
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परिमल- अंचल, <br>
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परिमल- अंचल,
छिन्न हार से बिखर पड़े सखि ! <br>
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छिन्न हार से बिखर पड़े सखि !
जुगनू के लघु हीरक के कण ! <br>
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जुगनू के लघु हीरक के कण !
लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
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लाये कौन सँदेश नये घन !
  
जड़ जग स्पन्दित, <br>
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जड़ जग स्पन्दित,
निश्चल कम्पित, <br>
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फूट पड़े अवनी के संचित <br>
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फूट पड़े अवनी के संचित
सपने मृदुतम अंकुर बन बन ! <br>
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सपने मृदुतम अंकुर बन बन !
लाये कौन सँदेश नये घन !<br><br>
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लाये कौन सँदेश नये घन !
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रोया चातक, <br>
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सकुचाया पिक, <br>
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मत्त मयूरों ने सूने में <br>
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झड़ियों का दुहराया नर्तन ! <br>
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लाये कौन सँदेश नये घन ! <br><br>
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सुख-दुख से भर, <br>
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रोया चातक,
आया लघु उर, <br>
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सकुचाया पिक,
मोती से उजले जलकण से <br>
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मत्त मयूरों ने सूने में
छाये मेरे विस्मित लोचन ! <br>
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झड़ियों का दुहराया नर्तन !
लाये कौन सँदेश नये घन ! <br>
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लाये कौन सँदेश नये घन !
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सुख-दुख से भर,
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आया लघु उर,
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मोती से उजले जलकण से
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छाये मेरे विस्मित लोचन !
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लाये कौन सँदेश नये घन !
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18:26, 13 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

लाये कौन सँदेश नये घन !
अम्बर गर्वित
हो आया नत,
चिर निस्पन्द हृदय में उसके
उमड़े री पलकों के सावन !

लाये कौन सँदेश नये घन !

चौंकी निद्रित,
रजनी अलसित
श्यामल पुलकित कम्पित कर में
दमक उठे विद्युत् के कंकण !
लाये कौन सँदेश नये घन !

दिशि का चंचल,
परिमल- अंचल,
छिन्न हार से बिखर पड़े सखि !
जुगनू के लघु हीरक के कण !
लाये कौन सँदेश नये घन !

जड़ जग स्पन्दित,
निश्चल कम्पित,
फूट पड़े अवनी के संचित
सपने मृदुतम अंकुर बन बन !
लाये कौन सँदेश नये घन !

रोया चातक,
सकुचाया पिक,
मत्त मयूरों ने सूने में
झड़ियों का दुहराया नर्तन !
लाये कौन सँदेश नये घन !

सुख-दुख से भर,
आया लघु उर,
मोती से उजले जलकण से
छाये मेरे विस्मित लोचन !
लाये कौन सँदेश नये घन !