भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"नये घन / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=महादेवी वर्मा | |रचनाकार=महादेवी वर्मा | ||
+ | |अनुवादक= | ||
|संग्रह=नीलाम्बरा / महादेवी वर्मा | |संग्रह=नीलाम्बरा / महादेवी वर्मा | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | लाये कौन सँदेश नये घन ! | + | <poem> |
− | अम्बर गर्वित | + | लाये कौन सँदेश नये घन ! |
− | हो आया नत, | + | अम्बर गर्वित |
− | चिर निस्पन्द हृदय में उसके | + | हो आया नत, |
− | उमड़े री पलकों के सावन ! | + | चिर निस्पन्द हृदय में उसके |
+ | उमड़े री पलकों के सावन ! | ||
− | लाये कौन सँदेश नये घन ! | + | लाये कौन सँदेश नये घन ! |
− | चौंकी निद्रित, | + | चौंकी निद्रित, |
− | रजनी अलसित | + | रजनी अलसित |
− | श्यामल पुलकित कम्पित कर में | + | श्यामल पुलकित कम्पित कर में |
− | दमक उठे विद्युत् के कंकण ! | + | दमक उठे विद्युत् के कंकण ! |
− | लाये कौन सँदेश नये घन ! | + | लाये कौन सँदेश नये घन ! |
− | दिशि का चंचल, | + | दिशि का चंचल, |
− | परिमल- अंचल, | + | परिमल- अंचल, |
− | छिन्न हार से बिखर पड़े सखि ! | + | छिन्न हार से बिखर पड़े सखि ! |
− | जुगनू के लघु हीरक के कण ! | + | जुगनू के लघु हीरक के कण ! |
− | लाये कौन सँदेश नये घन ! | + | लाये कौन सँदेश नये घन ! |
− | जड़ जग स्पन्दित, | + | जड़ जग स्पन्दित, |
− | निश्चल कम्पित, | + | निश्चल कम्पित, |
− | फूट पड़े अवनी के संचित | + | फूट पड़े अवनी के संचित |
− | सपने मृदुतम अंकुर बन बन ! | + | सपने मृदुतम अंकुर बन बन ! |
− | लाये कौन सँदेश नये घन ! | + | लाये कौन सँदेश नये घन ! |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | सुख-दुख से भर, | + | रोया चातक, |
− | आया लघु उर, | + | सकुचाया पिक, |
− | मोती से उजले जलकण से | + | मत्त मयूरों ने सूने में |
− | छाये मेरे विस्मित लोचन ! | + | झड़ियों का दुहराया नर्तन ! |
− | लाये कौन सँदेश नये घन ! < | + | लाये कौन सँदेश नये घन ! |
+ | |||
+ | सुख-दुख से भर, | ||
+ | आया लघु उर, | ||
+ | मोती से उजले जलकण से | ||
+ | छाये मेरे विस्मित लोचन ! | ||
+ | लाये कौन सँदेश नये घन ! | ||
+ | </poem> |
18:26, 13 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
लाये कौन सँदेश नये घन !
अम्बर गर्वित
हो आया नत,
चिर निस्पन्द हृदय में उसके
उमड़े री पलकों के सावन !
लाये कौन सँदेश नये घन !
चौंकी निद्रित,
रजनी अलसित
श्यामल पुलकित कम्पित कर में
दमक उठे विद्युत् के कंकण !
लाये कौन सँदेश नये घन !
दिशि का चंचल,
परिमल- अंचल,
छिन्न हार से बिखर पड़े सखि !
जुगनू के लघु हीरक के कण !
लाये कौन सँदेश नये घन !
जड़ जग स्पन्दित,
निश्चल कम्पित,
फूट पड़े अवनी के संचित
सपने मृदुतम अंकुर बन बन !
लाये कौन सँदेश नये घन !
रोया चातक,
सकुचाया पिक,
मत्त मयूरों ने सूने में
झड़ियों का दुहराया नर्तन !
लाये कौन सँदेश नये घन !
सुख-दुख से भर,
आया लघु उर,
मोती से उजले जलकण से
छाये मेरे विस्मित लोचन !
लाये कौन सँदेश नये घन !