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"तुहिन और तारे / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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हरे हरे पत्तों पर जो हैं सजीं हुईं  
 
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भोर के धुंधलके में अवतरित धरा  
 
भोर के धुंधलके में अवतरित धरा  
पर चुपचाप बिखरते तुहीन  कण !
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पर चुपचाप बिखरते तुहिन कण !
 
देख, उनको सोचती हूँ मैं मन ही मन  
 
देख, उनको सोचती हूँ मैं मन ही मन  
 
क्यों इनका अस्त्तित्त्व, वसुंधरा पर ?
 
क्यों इनका अस्त्तित्त्व, वसुंधरा पर ?

19:04, 18 जुलाई 2020 का अवतरण

आसमाँ पे टिमटिमाते अनगिनत
क्षितिज के एक छोर से दूजी ओर
छोटे बड़े मंद या उद्दीप्त तारे !

जमीन पर हरी दूब पे बिछे हुए,
हरे हरे पत्तों पर जो हैं सजीं हुईं
भोर के धुंधलके में अवतरित धरा
पर चुपचाप बिखरते तुहिन कण !
देख, उनको सोचती हूँ मैं मन ही मन
क्यों इनका अस्त्तित्त्व, वसुंधरा पर ?
मनुज भी बिखरे हुए, जहां चहुँ ओर
माँ धरती के पट पर, विपुल विविधता
दिखलाती प्रकृति, अपना दिव्य रूप !
तृण पर, कण कण पर जलधि जल में !
हर लहर उठती, मिटती संग भाटा या
ज्वार के संग बहते, श श ... ना कर शोर !