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"मधुशाला / भाग ४ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला,
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हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
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आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
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कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।६१।
  
कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला,<br>
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आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,<br>
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आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,<br>
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छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।६१।<br><br>
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एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२।
  
आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला<br>
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आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,<br>
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भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,<br>
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और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२।<br><br>
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अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।६३।
  
आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,<br>
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सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,<br>
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छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला,
और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,<br>
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मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।६३।<br><br>
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जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।
  
सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला<br>
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दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला,<br>
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भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ<br>
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नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।<br><br>
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अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ -अदाई मधुशाला।।६५।
  
दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,<br>
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छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,<br>
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आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,<br>
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स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ -अदाई मधुशाला।।६५।<br><br>
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बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।
  
छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,<br>
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क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',<br>
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क्या जीना, निरंिचत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,<br>
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खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।<br><br>
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मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।६७।
  
क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,<br>
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मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
क्या जीना, निरंिचत न जब तक साथ रहे साकीबाला,<br>
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मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,<br>
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इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।६७।<br><br>
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सिंधँु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।६८।
  
मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला! <br>
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क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!<br>
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क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,<br>
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थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
सिंधँु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।६८।<br><br>
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प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।६९।
  
क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,<br>
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लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,<br>
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लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,<br>
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लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।६९।<br><br>
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लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।७०।
  
लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,<br>
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कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,<br>
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दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,<br>
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मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।७०।<br><br>
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जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।७१।
  
कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,<br>
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ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,<br>
+
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,
मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,<br>
+
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।७१।<br><br>
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दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।७२।
  
ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,<br>
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क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,<br>
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भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,<br>
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मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।७२।<br><br>
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काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।७३।
  
क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,<br>
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प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,<br>
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नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,<br>
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जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।७३।<br><br>
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जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।७४।
  
प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,<br>
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अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,<br>
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क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,<br>
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तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,
जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।७४।<br><br>
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हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।७५।
  
अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,<br>
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यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,
क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,<br>
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पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,<br>
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क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।७५।<br><br>
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डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।७६।
  
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,<br>
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यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,<br>
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यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के<br>
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हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।७६।<br><br>
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मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।७७।
  
यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,<br>
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याद न आए दूखमय जीवन इससे पी लेता हाला,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,<br>
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जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,<br>
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शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,
मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।७७।<br><br>
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पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।७८।
  
याद न आए दूखमय जीवन इससे पी लेता हाला,<br>
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गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,<br>
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भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,<br>
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रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।७८।<br><br>
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सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।७९।
  
गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला<br>
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यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,<br>
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पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी<br>
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यह अंितम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।७९।<br><br>
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पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।८०।
 
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यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,<br>
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पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,<br>
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15:26, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला,
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।।६१।

आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।६२।

आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।।६३।

सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला
छलक रही है जिसमंे माणिक रूप मधुर मादक हाला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।।६४।

दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ -अदाई मधुशाला।।६५।

छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया 'जानेवाला',
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।

क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निरंिचत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।६७।

मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,
सिंधँु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।।६८।

क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।।६९।

लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।।७०।

कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।।७१।

ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।।७२।

क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।।७३।

प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।।७४।

अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,
क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,
तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,
हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।।७५।

यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।।७६।

यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।।७७।

याद न आए दूखमय जीवन इससे पी लेता हाला,
जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,
पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।।७८।

गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।।७९।

यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
यह अंितम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।८०।