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"ढह गया दिन / अंकित काव्यांश" के अवतरणों में अंतर
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और दिन दिनभर पिघलता याद में। | और दिन दिनभर पिघलता याद में। | ||
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हिलता दीखता है | हिलता दीखता है | ||
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कल मिलेंगे आज खोकर कह गया दिन। | कल मिलेंगे आज खोकर कह गया दिन। | ||
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अनगिन रास्तों पर, | अनगिन रास्तों पर, | ||
कौन किसका कौन किसका क्या पता? | कौन किसका कौन किसका क्या पता? | ||
− | हाँ मगर दिन के लिए, | + | हाँ, मगर दिन के लिए, |
दिन के सहारे, | दिन के सहारे, | ||
रात दिन होते दिखे हैं लापता। | रात दिन होते दिखे हैं लापता। | ||
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दूर वह जो रेत का तट | दूर वह जो रेत का तट | ||
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किन्तु घुलना एक दिन कह बह गया दिन। | किन्तु घुलना एक दिन कह बह गया दिन। | ||
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00:59, 3 अगस्त 2020 का अवतरण
ढल गई फिर शाम देखो ढह गया दिन
भूल जाती है सुबह,
सुबह निकलकर
और दिन दिनभर पिघलता याद में।
चान्दनी का महल
हिलता दीखता है
चान्द रोता इस क़दर बुनियाद में।
कल मिलेंगे आज खोकर कह गया दिन।
ढल गई फिर शाम देखो ढह गया दिन।
रोज़ अनगिन स्वप्न,
अनगिन रास्तों पर,
कौन किसका कौन किसका क्या पता?
हाँ, मगर दिन के लिए,
दिन के सहारे,
रात दिन होते दिखे हैं लापता।
एक मंज़िल की तरह ही रह गया दिन।
ढल गई फिर शाम देखो ढह गया दिन।
दूर वह जो रेत का तट
है खिसकता
देखना मिल जाएगा एक दिन नदी में।
नाव मिट्टी की लिए
इतरा रहे जो
दर्ज होना चाहते हैं सब सदी में।
किन्तु घुलना एक दिन कह बह गया दिन।
ढल गई फिर शाम देखो ढह गया दिन।