भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आ अब लौट चलें / शार्दुला नोगजा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शार्दुला नोगजा }} <poem> आ अब लौट चलें किस रंग खिलीं ...)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
 
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
 
}}
 
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
आ अब लौट चलें
 
आ अब लौट चलें

14:44, 7 सितम्बर 2020 के समय का अवतरण

आ अब लौट चलें

किस रंग खिलीं कलियाँ
दुबकी आई क्या छिपकलियाँ
सूनी रोई होंगी गलियाँ
घर लौटूँ तो बताना

जो स्वप्न बुने मैंने
जो गीत चुने मैंने
किस्से जो गुने मैंने
मैं आऊँ तो दोहराना

थक सा गया है थोडा
मेरीे बाजुओं का जोडा
अब पाँव घर को मोडा
अपनी पलकें तुम बिछाना