भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मुझे पता है क्यों गाता है पिंजरे का पक्षी / बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ / माया एंजलो" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माया एंजलो |अनुवादक=बालकृष्ण काब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 41: पंक्ति 41:
  
 
''' मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ '''
 
''' मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’ '''
 +
 +
'''[[किन गाउँछ पिँजडाको चरो? / माया एन्जोलो / सुमन पोखरेल|यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ]]'''
 
</poem>
 
</poem>

08:47, 4 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण

एक मुक्त पक्षी उछलता
हवा में और उड़ता चला जाता
जहाँ-जहाँ तक बहाव
समोता अपने पंख नारंगी सूर्य किरणों में
जमाता आकाश पर अपना अधिकार।

लेकिन वह पक्षी जो करता विचरण अपने सँकरे पिंजरे में
कदाचित ही वह हो पाता अपने क्रोध से बाहर
काट दिए गए हैं उसके पंख, बान्ध दिए गए हैं पैर
इसलिए खोलता अपना गला वह गान के लिए।

गाता है पिंजरे का पक्षी भयाकुल स्वर में
गीत अज्ञात पर जिसकी चाह आज भी
उसकी यह धुन सुनाई देती सुदूर पहाड़ी तक
कि पिंजरे का पक्षी गाता है मुक्ति का गीत।

मुक्त पक्षी का इरादा एक और उड़ान का
और मौसमी बयार बहती मन्द-मन्द
होती सरसराहट वृक्षों की
मोटी कृमियाँ करती प्रतीक्षा सुबह चमकीले लॉन में
और आकाश को करता वह अपने नाम।

लेकिन पिंजरे का पक्षी खड़ा है अपने सपनों की क़ब्र पर
दु:स्वप्न की कराह पर चीख़ती है उसकी परछाई
काट दिए गए हैं उसके पंख, बाँध दिए गए हैं पैर
इसलिए खोलता अपना गला वह गान के लिए।

गाता है पिंजरे का पक्षी
भयाकुल स्वर में गीत अज्ञात
पर जिसकी चाह आज भी
उसकी यह धुन सुनाई देती सुदूर पहाड़ी तक
कि पिंजरे का पक्षी गाता है मुक्ति का गीत।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’

यहाँ क्लिक गरेर यस कविताको नेपाली अनुवाद पढ्न सकिन्छ