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"मंगलेश की चाय / देवेन्द्र मोहन" के अवतरणों में अंतर
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08:01, 11 दिसम्बर 2020 के समय का अवतरण
सरदार जी वाले रौनिका ढाबे में
सबने चाय मँगवाई
चाय के आते ही पलक झपकते
मंगलेश ने गिलास की सारी चाय
हलक़ के नीचे उतार ली —
एक घूँट में ।
‘‘पहाड़ों पर बर्फ़बारी के समय
केतली से गिलास में चाय डालते ही
एक ही घूंट में पी ली जाती है
वर्ना चाय बर्फ़ में तब्दील हो जाती है,
’’मंगलेश ने हैरान आँखों को समझाया
फिर, अगले ही क्षण,
सबने देखा —
मरुभूमि जैसे तपते इस शहर में
मंगलेश की आँखों में
बर्फ़ उतर आई थी और
एक अविरल गर्म अश्रु धारा बन गई थी