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"रात भर / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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रात भर चलती हैं रेलें
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रातभर चलती हैं रेलें
ट्रक ढोते हैं माल रात भर
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ट्रक ढोते हैं माल रातभर
 
कारख़ाने चलते हैं
 
कारख़ाने चलते हैं
  
 
कामगार रहते हैं बेहोश
 
कामगार रहते हैं बेहोश
होशमंद करवटें बदलते हैं रात भर
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होशमन्द करवटें बदलते हैं रातभर
 
अपराधी सोते हैं
 
अपराधी सोते हैं
अपराधों का कोई संबंध अब
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अपराधों का कोई सम्बन्ध अब
अंधेरे से नहीं रहा
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अन्धेरे से नहीं रहा
  
 
सुबह सभी दफ़्तर खुलते हैं अपराध के।
 
सुबह सभी दफ़्तर खुलते हैं अपराध के।
 
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15:52, 24 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

रातभर चलती हैं रेलें
ट्रक ढोते हैं माल रातभर
कारख़ाने चलते हैं

कामगार रहते हैं बेहोश
होशमन्द करवटें बदलते हैं रातभर
अपराधी सोते हैं
अपराधों का कोई सम्बन्ध अब
अन्धेरे से नहीं रहा

सुबह सभी दफ़्तर खुलते हैं अपराध के।