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"यह है भारत देश हमारा / सुब्रह्मण्यम भारती" के अवतरणों में अंतर

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बहती है क्या कहीं और भी, ऎसी पावन कल-कल धारा?
 
बहती है क्या कहीं और भी, ऎसी पावन कल-कल धारा?
  
:सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है
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          सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है
:अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है।
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          अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है।
:गाएँगे यश ह्म सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा,
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          गाएँगे यश हम सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा,
:आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।
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          आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।
  
 
यह है भारत देश हमारा, महारथी कई हुए जहाँ पर,
 
यह है भारत देश हमारा, महारथी कई हुए जहाँ पर,
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यह है देश जहाँ पर बनते, सर्वोत्तम सामान सभी थे।
 
यह है देश जहाँ पर बनते, सर्वोत्तम सामान सभी थे।
  
:यह है देश हमारा भारत, पूर्ण ज्ञान का शुभ्र निकेतन,
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          यह है देश हमारा भारत, पूर्ण ज्ञान का शुभ्र निकेतन,
:यह है देश जहाँ पर बरसी, बुद्धदेव की करुणा चेतन,
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          यह है देश जहाँ पर बरसी, बुद्धदेव की करुणा चेतन,
:है महान, अति भव्य पुरातन, गूँजेगा यह गान हमारा,
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          है महान, अति भव्य पुरातन, गूँजेगा यह गान हमारा,
:है क्या हम-सा कोई जग में, यह है भारत देश हमारा।
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          है क्या हम-सा कोई जग में, यह है भारत देश हमारा।
  
 
विघ्नों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,
 
विघ्नों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,
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पुण्यभूमि यह भारत माता, जग की हम तो भीख न लेंगे।
 
पुण्यभूमि यह भारत माता, जग की हम तो भीख न लेंगे।
  
:मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,
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          मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,
:कदली, चावल, अन्न विविध अरु क्षीर सुधामय लुटा रही है,
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          कदली, चावल, अन्न विविध अरु क्षीर सुधामय लुटा रही है,
:आर्य-भूमि उत्कर्षमयी यह, गूँजेगा यह गान हमारा,
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          आर्य-भूमि उत्कर्षमयी यह, गूँजेगा यह गान हमारा,
:कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।
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          कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।
 
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23:20, 18 मार्च 2021 का अवतरण

चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है।
जोड़ नहीं धरती पर जिसका, वह नगराज हमारा ही है।
नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा,
बहती है क्या कहीं और भी, ऎसी पावन कल-कल धारा?

          सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है
          अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है।
          गाएँगे यश हम सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा,
          आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।

यह है भारत देश हमारा, महारथी कई हुए जहाँ पर,
यह है देश मही का स्वर्णिम, ऋषियों ने तप किए जहाँ पर,
यह है देश जहाँ नारद के, गूँजे मधुमय गान कभी थे,
यह है देश जहाँ पर बनते, सर्वोत्तम सामान सभी थे।

          यह है देश हमारा भारत, पूर्ण ज्ञान का शुभ्र निकेतन,
          यह है देश जहाँ पर बरसी, बुद्धदेव की करुणा चेतन,
          है महान, अति भव्य पुरातन, गूँजेगा यह गान हमारा,
          है क्या हम-सा कोई जग में, यह है भारत देश हमारा।

विघ्नों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,
अब न रहेंगे दलित-दीन हम, कहीं किसी से हीन न होंगे,
क्षुद्र स्वार्थ की ख़ातिर हम तो, कभी न ओछे कर्म करेंगे,
पुण्यभूमि यह भारत माता, जग की हम तो भीख न लेंगे।

          मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,
          कदली, चावल, अन्न विविध अरु क्षीर सुधामय लुटा रही है,
          आर्य-भूमि उत्कर्षमयी यह, गूँजेगा यह गान हमारा,
          कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।