भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गुज़री पीढ़ी / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार |संग्रह=ये फूल नहीं / अजित कुमार }} <Poem> ग...)
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
गुज़री पीढी
 
 
 
दूकान बढाने के लिए मजबूर एक मालिक
 
दूकान बढाने के लिए मजबूर एक मालिक
 
शासन को, नियम को,
 
शासन को, नियम को,

20:22, 11 अक्टूबर 2008 का अवतरण

दूकान बढाने के लिए मजबूर एक मालिक
शासन को, नियम को,
उनके रक्षकों
और
अपने मातहतों को
भरपूर गालियाँ दे चुकने के बाद
अब
रोशनियाँ बुझाते
और
ताले बंद करते हुए
देखो । देखो ।
कैसे कोस रहा है उसी दूकान को ।