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"तरल मीन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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गीले कपोल ।
 
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कितने हाथ !
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छलने को आतुर
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छोड़ूँ न साथ।
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केवल नारी?
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नहीं, तुम हो आत्मा
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मेरी आराध्या
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दर्द ही सहे
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तू मेरी वसुन्धरा
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उफ़ न कहे।
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मैं अभिशप्त
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करूँ तुझे संतप्त
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दण्डित करो।
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दुख ही दिया
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जो चाहूँ सुख देना
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नियति क्रूर।
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सिंधु से बिंदु
 
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अलग हो भी कैसे
 
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एकाकार है।
 
एकाकार है।
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विलीन हुई
 
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तरंग सागर में
 
तरंग सागर में

04:16, 21 मार्च 2021 के समय का अवतरण

17
तरल मीन
उमड़ा पीर-सिन्धु
गीले कपोल ।
18
कितने हाथ !
छलने को आतुर
छोड़ूँ न साथ।
19
केवल नारी?
नहीं, तुम हो आत्मा
मेरी आराध्या
20
दर्द ही सहे
तू मेरी वसुन्धरा
उफ़ न कहे।
21
मैं अभिशप्त
करूँ तुझे संतप्त
दण्डित करो।
22
दुख ही दिया
जो चाहूँ सुख देना
नियति क्रूर।
23
सिंधु से बिंदु
अलग हो भी कैसे
एकाकार है।
24
विलीन हुई
तरंग सागर में
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