नेह था बाँटा
अँजुरी भर-भर
जीवन- घट रीता
प्यास लगी थी
दो घूँट जल माँगा
रंग बिखरे
इन्द्रधनुष बन
नयन नयनों के नभ में
छलक रहा
साँझ-सा अनुराग
पलकों की कोरों पे ।
26
फूटी किरनेकिरनें
सुरमई साँझ भी
रूपसी बन गईगई।
लौटेंगे सब
माना नीड़ में पाखी
ये पक्ल पल न लौटेंगे।
27
मत रो यार
अब तक जो बीता
वापस न आएगा,
पास में तेरे
जितने भी पल हैं
कुरेदो नहीं
तुमने जो दिए थे
घाव हुए गहरे ,
कैसे सुनेंगे
हाल मेरे मन का
एकाकी मन
सरहदों के पार
ढूँढ़ता ढूँढता रहा प्यार,
उठी नज़र
जो घर-आँगन में