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"हाइकु / सुशीला राणा / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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बजें घुँघरू
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बजू घुँगूर
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मंदिर कबि कोठा
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हँसी कमनसीबी
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पैरों से बँधी।
  
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चीखीं दीवारें
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घुँघरू के शोर में
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बिकी आबरू।
  
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किलैंन पाळि
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घुँगूर क रौळा माँ
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बिकि इजत
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भक्ति-मुजरा
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श्रद्धा कभी लांछन
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घुँघरू वही।
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सरधा कबि लाँछन
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पीढ़ी तरसें
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आँगन में घुँघरू
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कभी तो बजें।
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खोजा बहुत
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मिला न पानी।
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खुजाइ भौत
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मिलि नीं पाणि
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प्यारी चिरैया
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हँसे हैं पत्ते-शाखें
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तुमको पाके
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हैंस्दन पत्ता-फाँगा
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तुम तैं पैकि
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हवा बासंती
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लाई पिया की पाती
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हँसती गाती
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हवा बसन्ति
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ल्हाई स्वामी पंगत
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हैंसदि गाँदि
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लिखे प्रकृति
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प्रीत के अनुबंध
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फूलों के संग।
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लेखु पर्किर्ति
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प्रीता का सौं-करार
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फुल्लू कि गैल
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नेह-निर्झर
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क्लांत-श्रांत जग का
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ज्यों हो पुष्कर।
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माया कु धारु
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बिचैन सांत दुन्या
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जन पुस्कर
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कवि का कर्म
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शब्दों का ताना-बाना
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भावों का मर्म ।
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सबदु कु जंजाळ
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भौ कु यु सार
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व्याकुल प्राण
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बरसो घनघोर
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मेघा दो त्राण ।
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बिचैन प्राणी
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बादळ मुग्स
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14:01, 3 मई 2021 के समय का अवतरण

1
बजें घुँघरू
मंदिर कभी कोठे
यही किस्मत ।

बजू घुँगूर
मंदिर कबि कोठा
इ च करम
2
रूह की धुन
हँसी कमनसीबी
पैरों से बँधी।

आत्मै कि ताल
हैंसी बुरु करम
खुट्टों माँ बंधि
3
चीखीं दीवारें
घुँघरू के शोर में
बिकी आबरू।

किलैंन पाळि
घुँगूर क रौळा माँ
बिकि इजत
4
भक्ति-मुजरा
श्रद्धा कभी लांछन
घुँघरू वही।

भग्ति-मुजरा
सरधा कबि लाँछन
घुँगूर व्यिई
5
पीढ़ी तरसें
आँगन में घुँघरू
कभी तो बजें।

साक्यों तरसिं
चौक माँ ईँ घुँगूर
कबि त बज्दा
6
खोजा बहुत
नदी-घट-नयनों में
मिला न पानी।

खुजाइ भौत
गंगा-घौड़ो-पाणि म
मिलि नीं पाणि
7
प्यारी चिरैया
हँसे हैं पत्ते-शाखें
तुमको पाके

प्यारि प्वथली
हैंस्दन पत्ता-फाँगा
तुम तैं पैकि
8
हवा बासंती
लाई पिया की पाती
हँसती गाती

हवा बसन्ति
ल्हाई स्वामी पंगत
हैंसदि गाँदि
9
लिखे प्रकृति
प्रीत के अनुबंध
फूलों के संग।

लेखु पर्किर्ति
प्रीता का सौं-करार
फुल्लू कि गैल
10
नेह-निर्झर
क्लांत-श्रांत जग का
ज्यों हो पुष्कर।

माया कु धारु
बिचैन सांत दुन्या
जन पुस्कर
11
कवि का कर्म
शब्दों का ताना-बाना
भावों का मर्म ।

लिख्वारौ कर्म
सबदु कु जंजाळ
भौ कु यु सार
12
व्याकुल प्राण
बरसो घनघोर
मेघा दो त्राण ।

बिचैन प्राणी
बर्खि जा जमी कैंईँ
बादळ मुग्स
-0-