"हाइकु / सुशीला राणा / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला राणा |अनुवादक=कविता भट्ट |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatHaiku}} | {{KKCatHaiku}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | 1 | ||
+ | बजें घुँघरू | ||
+ | मंदिर कभी कोठे | ||
+ | यही किस्मत । | ||
+ | बजू घुँगूर | ||
+ | मंदिर कबि कोठा | ||
+ | इ च करम | ||
+ | 2 | ||
+ | रूह की धुन | ||
+ | हँसी कमनसीबी | ||
+ | पैरों से बँधी। | ||
+ | आत्मै कि ताल | ||
+ | हैंसी बुरु करम | ||
+ | खुट्टों माँ बंधि | ||
+ | 3 | ||
+ | चीखीं दीवारें | ||
+ | घुँघरू के शोर में | ||
+ | बिकी आबरू। | ||
+ | किलैंन पाळि | ||
+ | घुँगूर क रौळा माँ | ||
+ | बिकि इजत | ||
+ | 4 | ||
+ | भक्ति-मुजरा | ||
+ | श्रद्धा कभी लांछन | ||
+ | घुँघरू वही। | ||
+ | |||
+ | भग्ति-मुजरा | ||
+ | सरधा कबि लाँछन | ||
+ | घुँगूर व्यिई | ||
+ | 5 | ||
+ | पीढ़ी तरसें | ||
+ | आँगन में घुँघरू | ||
+ | कभी तो बजें। | ||
+ | |||
+ | साक्यों तरसिं | ||
+ | चौक माँ ईँ घुँगूर | ||
+ | कबि त बज्दा | ||
+ | 6 | ||
+ | खोजा बहुत | ||
+ | नदी-घट-नयनों में | ||
+ | मिला न पानी। | ||
+ | |||
+ | खुजाइ भौत | ||
+ | गंगा-घौड़ो-पाणि म | ||
+ | मिलि नीं पाणि | ||
+ | 7 | ||
+ | प्यारी चिरैया | ||
+ | हँसे हैं पत्ते-शाखें | ||
+ | तुमको पाके | ||
+ | |||
+ | प्यारि प्वथली | ||
+ | हैंस्दन पत्ता-फाँगा | ||
+ | तुम तैं पैकि | ||
+ | 8 | ||
+ | हवा बासंती | ||
+ | लाई पिया की पाती | ||
+ | हँसती गाती | ||
+ | |||
+ | हवा बसन्ति | ||
+ | ल्हाई स्वामी पंगत | ||
+ | हैंसदि गाँदि | ||
+ | 9 | ||
+ | लिखे प्रकृति | ||
+ | प्रीत के अनुबंध | ||
+ | फूलों के संग। | ||
+ | |||
+ | लेखु पर्किर्ति | ||
+ | प्रीता का सौं-करार | ||
+ | फुल्लू कि गैल | ||
+ | 10 | ||
+ | नेह-निर्झर | ||
+ | क्लांत-श्रांत जग का | ||
+ | ज्यों हो पुष्कर। | ||
+ | |||
+ | माया कु धारु | ||
+ | बिचैन सांत दुन्या | ||
+ | जन पुस्कर | ||
+ | 11 | ||
+ | कवि का कर्म | ||
+ | शब्दों का ताना-बाना | ||
+ | भावों का मर्म । | ||
+ | |||
+ | लिख्वारौ कर्म | ||
+ | सबदु कु जंजाळ | ||
+ | भौ कु यु सार | ||
+ | 12 | ||
+ | व्याकुल प्राण | ||
+ | बरसो घनघोर | ||
+ | मेघा दो त्राण । | ||
+ | |||
+ | बिचैन प्राणी | ||
+ | बर्खि जा जमी कैंईँ | ||
+ | बादळ मुग्स | ||
+ | -0- | ||
</poem> | </poem> |
14:01, 3 मई 2021 के समय का अवतरण
1
बजें घुँघरू
मंदिर कभी कोठे
यही किस्मत ।
बजू घुँगूर
मंदिर कबि कोठा
इ च करम
2
रूह की धुन
हँसी कमनसीबी
पैरों से बँधी।
आत्मै कि ताल
हैंसी बुरु करम
खुट्टों माँ बंधि
3
चीखीं दीवारें
घुँघरू के शोर में
बिकी आबरू।
किलैंन पाळि
घुँगूर क रौळा माँ
बिकि इजत
4
भक्ति-मुजरा
श्रद्धा कभी लांछन
घुँघरू वही।
भग्ति-मुजरा
सरधा कबि लाँछन
घुँगूर व्यिई
5
पीढ़ी तरसें
आँगन में घुँघरू
कभी तो बजें।
साक्यों तरसिं
चौक माँ ईँ घुँगूर
कबि त बज्दा
6
खोजा बहुत
नदी-घट-नयनों में
मिला न पानी।
खुजाइ भौत
गंगा-घौड़ो-पाणि म
मिलि नीं पाणि
7
प्यारी चिरैया
हँसे हैं पत्ते-शाखें
तुमको पाके
प्यारि प्वथली
हैंस्दन पत्ता-फाँगा
तुम तैं पैकि
8
हवा बासंती
लाई पिया की पाती
हँसती गाती
हवा बसन्ति
ल्हाई स्वामी पंगत
हैंसदि गाँदि
9
लिखे प्रकृति
प्रीत के अनुबंध
फूलों के संग।
लेखु पर्किर्ति
प्रीता का सौं-करार
फुल्लू कि गैल
10
नेह-निर्झर
क्लांत-श्रांत जग का
ज्यों हो पुष्कर।
माया कु धारु
बिचैन सांत दुन्या
जन पुस्कर
11
कवि का कर्म
शब्दों का ताना-बाना
भावों का मर्म ।
लिख्वारौ कर्म
सबदु कु जंजाळ
भौ कु यु सार
12
व्याकुल प्राण
बरसो घनघोर
मेघा दो त्राण ।
बिचैन प्राणी
बर्खि जा जमी कैंईँ
बादळ मुग्स
-0-