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"अधरं संस्पृश्यापि(मुक्तक) / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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17:58, 5 मई 2021 के समय का अवतरण
(संस्कृतानुवादकः-आचार्यःविशालप्रसादभट्टः)
अधरं संस्पृश्यापि कण्ठः न कदापि सिञ्चितं शक्तं,
तेनैव चषकेण मम मध्वाभिलाषाऽऽसीत्।
सो मय्यन्विष्यन्नासीत् प्रतिपलं देवि!,
मया तस्मिन् केवलं मानवतायान्वेषणं विहितम्।।
ममान्तःकरणे भूत्वाऽपि यो सहैव नासीत्।
मदीया हृदयगतिस्तन्निकटैवासीत्।
स्मिततायाः शतं कारणानि सन्ति जगति,
पुनरप्यश्रुपूरिते नयने अहमुदासीना जाता।।
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अधर छूकर(मुक्तक) / कविता भट्ट