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"आँखें गले मिलीं / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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'''आँखें गले मिलीं तो कर गईं,''' | '''आँखें गले मिलीं तो कर गईं,''' |
01:28, 20 मई 2021 के समय का अवतरण
आँखें गले मिलीं तो कर गईं,
निश्छल शैशव का आलिंगन।
पहाड़ी झरने- सी उसकी हँसी,
दो पल नहाया मेरा बचपन।
एक-एक धारा में भर अंजुलि,
जी न भरा, जी लिया जीवन ।
बचपन जो पुरुष न था न स्त्री,
अब वह पुरुष, मैं स्त्री का बंधन।
देह बन्दी हुई जकड़न में ,
क्या पाया ,पाकर बैरी यौवन।
मन भिखारी-सिंहासन बुद्धि,
खोजूँ- पुनः वही मन-बचपन।