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"अँधेर को अँधेर कहा / विजय वाते" के अवतरणों में अंतर
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07:05, 30 अक्टूबर 2008 का अवतरण
मैने अँधेर को अँधेर कहा।
सिर्फ शबरी के झूठे बेर कहा।
तेरा कहर फैसला कबूल किया,
दिल दुखा, तो समय का फेर कहा।
क्या किसी माँ के दूध उमड़ा है,
आज फिर मैंने एक शेर कहा।
क्यों भला आज वो न इतराए,
मैंने मुफ़्लिस को जब कुबेर कहा।
मैंने एक शेर ही पढ़ा था 'विजय'
घाव ज़ख्मों के कब उकेर कहा।