"जीवन कुन दिन जाने हो ? / ध्रुव दवाडी" के अवतरणों में अंतर
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− | + | देख्दा देख्दै थाह नपाई दौडिरहेको दुनियाँमा | |
− | + | दिन पनि बदल्यो, मै पनि बदलें, बदले कति यस जीवनमा ! | |
− | + | लहलह हरिया पात झुलेका टाढा-टाढा ती वनमा, | |
− | + | फाँटहरूमा, गिरिमा देख्तछु परिवर्तित के-के घटना। | |
− | + | काम नलागी एक कुनामा थन्किरहेको यो जीवन | |
− | + | बाँच्तिनँ भन्दा-भन्दै खोजिरहेको परिवर्तन । | |
+ | उकुसमुकुस भै पर्खी-पर्खी जिङ्रिसकेका आकांक्षा | ||
+ | उत्सुकतामा तङ्रिन खोजी झुल्छन् बिच-बिच आशामा । | ||
+ | रिङटा रोक्ने तागत नहुँदा यी ढुनमुनिदै लड्दैछन् | ||
+ | मनको मनमै लत्री-लत्री दिन-दिन सुक्तै जाँदैछन् । | ||
− | + | थरथर काम्ने जीवन फितलो होइन मेरो होइन है, | |
− | + | न त म हुँ बलियो स्वस्थ निरोगी लड्ने बलियासंग कठै ! | |
− | + | रोग मलाई कस्तो लागी पार्यो हविगत यो मेरो, | |
− | + | सहँदा-सहँदै यस्तै रितले जीवन कुन दिन जाने हो? | |
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+ | भारती, २|१, असार २००७ | ||
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22:12, 13 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
देख्दा देख्दै थाह नपाई दौडिरहेको दुनियाँमा
दिन पनि बदल्यो, मै पनि बदलें, बदले कति यस जीवनमा !
लहलह हरिया पात झुलेका टाढा-टाढा ती वनमा,
फाँटहरूमा, गिरिमा देख्तछु परिवर्तित के-के घटना।
काम नलागी एक कुनामा थन्किरहेको यो जीवन
बाँच्तिनँ भन्दा-भन्दै खोजिरहेको परिवर्तन ।
उकुसमुकुस भै पर्खी-पर्खी जिङ्रिसकेका आकांक्षा
उत्सुकतामा तङ्रिन खोजी झुल्छन् बिच-बिच आशामा ।
रिङटा रोक्ने तागत नहुँदा यी ढुनमुनिदै लड्दैछन्
मनको मनमै लत्री-लत्री दिन-दिन सुक्तै जाँदैछन् ।
थरथर काम्ने जीवन फितलो होइन मेरो होइन है,
न त म हुँ बलियो स्वस्थ निरोगी लड्ने बलियासंग कठै !
रोग मलाई कस्तो लागी पार्यो हविगत यो मेरो,
सहँदा-सहँदै यस्तै रितले जीवन कुन दिन जाने हो?
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भारती, २|१, असार २००७