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"प्रेम का पौधा / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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+ | ‘तुम’ और ‘मैं’ से बढ़कर | ||
+ | हृदय में ‘हम’ का बीज न बोया जायेगा, | ||
+ | प्रेम की बेल पर | ||
+ | तब तलक हरियाली नहीं आ सकती! | ||
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18:20, 26 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
क्यों तुम
प्रेम का पौधा
हरा-भरा न रख सके
मुरझा गए पत्ते
और टूट कर
शाख से गिरते रहे
क्यों मैं
सूखी- बेजान मुरझाई- सी
पातियों को पतझड़ की रुत में
आँसुओं से सींचती रही
दोबारा खिल उठने की आस में
क्यों न सोचा
कि मैं खुद अकेले
कभी बहार का मौसम
नहीं बुला सकती
जब तलक
‘तुम’ और ‘मैं’ से बढ़कर
हृदय में ‘हम’ का बीज न बोया जायेगा,
प्रेम की बेल पर
तब तलक हरियाली नहीं आ सकती!