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तेरे काँधेअलकापुरीतेरी गोद जीवन की धुरीघूमती है 'मंगल' के ही इर्द-गिर्दव्यवधान के सब बंध काट सुख- पथ सीधा- सपाटचलते रहे उन्मुक्त तेरी उँगली को थामे मेरी आशा के पखेरू अब उड़ चले आकाश मेंलाँघकरभय- बन्धन- मेरुमैंने नभ नाप लियायह भांप लिया जो सृष्टि में न समाएआसमान भी भर न पाएतुझ- सा असीम प्रेम,और महान त्यागइस जगती में कोई कर न पाएतूने जो दी है उड़ानमेरे नन्हे मन कोमाँ नमन तुझेप्रति पल करूँ और दूँ आभारमुझे साफल्य देतेतेरे अतुल्य समर्पण को।
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