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"प्रेम चातक / विनीत मोहन औदिच्य" के अवतरणों में अंतर
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+ | तप्त तनु की रागिनी में भी तुम्हारा नाम है गूँजता | ||
+ | नित निहारूँ निशीथ ,तुम दृग अंजन में द्योतित हो | ||
+ | आर्द्र अधरों की कविता में स्वप्न पुष्प है खिलता । | ||
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+ | स्वप्न में भी हो अचंभित रूप अद्भुत नित्य लखता | ||
+ | स्मरण करते हुए तुमको ये सकल जीवन जिया है | ||
+ | विफल हैं सारे प्रलोभन मन किसी में नहीं रमता | ||
+ | विष रहा हो या अमिय घट प्रेम चातक बन पिया है। | ||
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+ | रूप राशि पर है डाला, रुपहले घूंघट का आवरण | ||
+ | लाज के पहरे चढ़ती निशा का पथ रोक लेते हैं तेरे | ||
+ | मंत्रमुग्ध कर बाँध लेता मुझे अनपेक्षित आचरण | ||
+ | प्रीति की गंगा में घुलकर मृदुलतम भाव बहते हैं मेरे। | ||
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+ | प्रेम का अनुबंध सुदृढ़, नित नवल आकार लेकर | ||
+ | गढ़ रहा है भावी जीवन हमें स्नेहिल आश्वस्ति देकर।। | ||
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19:03, 26 फ़रवरी 2022 के समय का अवतरण
हृद-स्पंदन के अनुराग में तुम ही तो समाहित हो
तप्त तनु की रागिनी में भी तुम्हारा नाम है गूँजता
नित निहारूँ निशीथ ,तुम दृग अंजन में द्योतित हो
आर्द्र अधरों की कविता में स्वप्न पुष्प है खिलता ।
स्वप्न में भी हो अचंभित रूप अद्भुत नित्य लखता
स्मरण करते हुए तुमको ये सकल जीवन जिया है
विफल हैं सारे प्रलोभन मन किसी में नहीं रमता
विष रहा हो या अमिय घट प्रेम चातक बन पिया है।
रूप राशि पर है डाला, रुपहले घूंघट का आवरण
लाज के पहरे चढ़ती निशा का पथ रोक लेते हैं तेरे
मंत्रमुग्ध कर बाँध लेता मुझे अनपेक्षित आचरण
प्रीति की गंगा में घुलकर मृदुलतम भाव बहते हैं मेरे।
प्रेम का अनुबंध सुदृढ़, नित नवल आकार लेकर
गढ़ रहा है भावी जीवन हमें स्नेहिल आश्वस्ति देकर।।
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