"श्रीकृष्ण सरल / परिचय" के अवतरणों में अंतर
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: जन्म- ०१ जनवरी १९१९ मृत्यु- ०२ दिसम्बर २००० ई०]] दुनिया में सबसे अध...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:57, 3 नवम्बर 2008 का अवतरण
जन्म- ०१ जनवरी १९१९ मृत्यु- ०२ दिसम्बर २००० ई०]]
दुनिया में सबसे अधिक महाकाव्य लिखने वाले, बलिपंथी शहीदों के चरित–चारण, राष्ट्र भक्ति के दुर्लभ–दृष्टान्त स्वरूप जीवित शहीदों से सम्मानित, तरुणाई के गौरव गायक जिनकी कविता का एक–एक शब्द मन में देशभक्ति की अजस्र ऊर्जा भर देता है। स्वतंत्रता संग्राम की महत्त्वपूर्ण किन्तु अत्यंत सरल और अचर्चित इकाई का नाम हैं प्रो०श्रीकृष्ण सरल। सरल जी के सुदूर पूर्वज जमींदार थे। अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हुए विद्रोही के रूप मे मारे गये और फाँसी पर लटका दिये गये, ग्राम-वासियों की मदद से एक गर्भवती महिला बचा ली गयी थी उसी महिला के गर्भ से उत्पन्न बालक से पुनः वंश वृद्धि हुई। उसी शाखा में ०१ जनवरी १९१९ को सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में अशोक नगर, गुना (म.प्र.) में सरल जी का जन्म हुआ। महाकाल की नगरी उज्जैन में साहित्य साधना की अखंड ज्योति जलाते हुए २ दिसम्बर २००० को इस संसार से विदा हो गये। जीवन पर्यन्त कठोर साहित्य साधना में संलग्न प्रो०सरल जी १३ वर्ष की अवस्था से ही क्रांति क्रांतिकारियों से परिचित होने के कारण शासन से दंड़ित हुए। महर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन से प्रेरित, शहीद भगतसिंह की माता श्रीमती विद्यावती जी के सानिध्य एवं विलक्षण क्रांतिकारियों के समीपी प्रो॰ सरल ने प्राणदानी पीढ़ियों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अपने साहित्य का विषय बनाया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं॰ बनारसीदास चतुर्वेदी ने कहा- 'भारतीय शहीदों का समुचित श्राद्ध श्री सरल ने किया है।' महान क्रान्तिकारी पं॰ परमानन्द का कथन है— 'सरल जीवित शहीद हैं।' जीवन के उत्तरार्ध में सरल जी आध्यात्मिक चिन्तन से प्रभावित होकर तीन महाकाव्य लिखे— तुलसी मानस, सरल रामायण एवं सीतायन। प्रो॰ सरल ने व्यक्तिगत प्रयत्नों से 15 महाकाव्यों सहित 124 ग्रन्थ लिखे उनका प्रकाशन कराया और स्वयं अपनी पुस्तकों की ५ लाख प्रतियाँ बेच लीं। क्रान्ति कथाओं का शोधपूर्ण लेखन करने के सन्दर्भ में स्वयं के खर्च पर १० देशों की यात्रा की। पुस्तकों के लिखने और उन्हें प्रकाशित कराने में सरल जी की अचल सम्पत्ति से लेकर पत्नी के आभूषण तक बिक गए। पाँच बार सरल जी को हृदयाघात हुआ पर उनकी कलम जीवन की अन्तिम साँस तक नहीं रुकी। (मृत्यु से ठीक एक घण्टे पूर्व लिखा उनका यह मुक्तक)—
यादें नक्श हो जायें किसी पत्थर पर तो वे पत्थर दिल को पिघला सकती हैं। यादें होतीं होते उनके पैर नहीं पर पीढ़ियों तलक वे जा सकती हैं।