"कबीर / हरीशचन्द्र पाण्डे" के अवतरणों में अंतर
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(1)
सामने छात्रगण
गुरु पढा रहे हैं कबीर
सूखते गलों के लिए
एक काई लगे घड़े में पानी भरा है
गुरु पढ़ा रहे हैं कबीर
बीच बीच में घड़े की ओर देख रहे हैं
बीच-बीच में उनका सीना चौड़ा हुआ जा रहा है
(2)
कौन जाएगा मरने मगहर
सबको चाहिए काशी अभी भी
मगहर वाले भी यह सोचते हुए मरते हैं सन्तोष से
वे मगहर में नहीं
अपने घर में मर रहे हैं
(3)
इतनी विशालकाय वह मूर्ति
कि सौ मज़दूर भी नहीं सँभाल पाये
उसे खड़ा करना मुश्किल
पत्थर नहीं
एक पहाड़ पूजा जाएगा अब
(4)
एक नहीं
दसियों लाउडस्पीकर हैं
एक ही आवाज़ अपनी कई आवाज़ों से टकरा रही है
पखेरू भाग खड़े हुए हैं पेड़ों से
अब और भी कम सुनाई पड़ता है ईश्वर को
(5)
जब केवल पाँच प्रश्न हुआ करते थे हल करने को
अनिवार्य थे कबीर
आज अनगिनत प्रश्न हैं