भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भरोसा / प्रकाश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रकाश |संग्रह= }} <Poem> अंधेरे घने सन्नाटे में डरकर...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:34, 3 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
अंधेरे घने सन्नाटे में
डरकर मैंने उसे पुकारा
रात के क्षितिज से
किसी का कोई
उत्तर न आया
मैंने शक किया-
वह नहीं है
अगले ही क्षण सिहरा
बुदबुदाया- वह है
है- और कहीं से एक चिड़िया
बोल उठी।