"ग़ज़ल 16-18 / विज्ञान व्रत" के अवतरणों में अंतर
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+ | है अजब ये ख़ामुशी | ||
+ | दे रही आवाज़ भी | ||
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+ | होश हो या बेख़ुदी | ||
+ | याद रहती आपकी | ||
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+ | क़ातिलाना हो गयी | ||
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+ | वो मुख़ातिब तो रहे | ||
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+ | आप मेरी सोच हैं | ||
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+ | मुझको अपने पास बुला कर | ||
+ | तू भी अपने साथ रहा कर | ||
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+ | अपनी ही तस्वीर बना कर | ||
+ | देख न पाया आँख उठा कर | ||
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+ | बे - उन्वान रहेंगी वर्ना | ||
+ | तहरीरों पर नाम लिखा कर | ||
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+ | सिर्फ़ ढलूँगा औज़ारों में | ||
+ | देखो तो मुझको पिघला कर | ||
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+ | सूरज बन कर देख लिया ना | ||
+ | अब सूरज-सा रोज़ जला कर | ||
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10:05, 31 मई 2022 के समय का अवतरण
16
मुझको जिस्म बनाकर देख
इक दिन मुझमें आकर देख
जिसका उत्तर तू ख़ुद है
अब वो प्रश्न उठाकर देख
अच्छा अपने 'ख़ुद' को तू
ख़ुद में ही दफ़नाकर देख
क्या समझा तू दुनिया को
दुनिया को समझाकर देख
तू अपनी ज़द में है क्या
अपना हाथ बढ़ाकर देख
17
है अजब ये ख़ामुशी
दे रही आवाज़ भी
होश हो या बेख़ुदी
याद रहती आपकी
क़ातिलाना हो गयी
आपकी ये सादगी
वो मुख़ातिब तो रहे
पर नहीं कुछ बात की
आप मेरी सोच हैं
आप भी सोचें कभी
18
मुझको अपने पास बुला कर
तू भी अपने साथ रहा कर
अपनी ही तस्वीर बना कर
देख न पाया आँख उठा कर
बे - उन्वान रहेंगी वर्ना
तहरीरों पर नाम लिखा कर
सिर्फ़ ढलूँगा औज़ारों में
देखो तो मुझको पिघला कर
सूरज बन कर देख लिया ना
अब सूरज-सा रोज़ जला कर