"कोरा जीवन / रश्मि विभा त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रश्मि विभा त्रिपाठी |संग्रह= }} Catego...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:हाइकु]] | [[Category:हाइकु]] | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | 1 | |
+ | करे निस्तार! | ||
+ | सच्चा सलाहकार | ||
+ | स्नेह तुम्हारा। | ||
+ | 2 | ||
+ | तुम्हें वन्दन! | ||
+ | है तरनतारन | ||
+ | तुम्हारा नेह। | ||
+ | 3 | ||
+ | कोरा जीवन- | ||
+ | तुमने रंग भरा | ||
+ | हो गया हरा! | ||
+ | 4 | ||
+ | बाँधो प्रेम का | ||
+ | कलाई पे कलावा | ||
+ | छोड़ो छलावा। | ||
+ | 5 | ||
+ | दुख से जना- | ||
+ | पीड़ा का कोप हरे | ||
+ | प्रिय- प्रार्थना! | ||
+ | 6 | ||
+ | प्रिय सींचते | ||
+ | मेरा मन- पाटल | ||
+ | मुझे दें बल। | ||
+ | 7 | ||
+ | पावन प्रीति! | ||
+ | प्रिय तेरी आरती | ||
+ | मैं उतारती। | ||
+ | 8 | ||
+ | कहीं अटकूँ- | ||
+ | तुम विश्वकोश- से | ||
+ | बचूँ दोष से! | ||
+ | 9 | ||
+ | लेती बलाएँ!! | ||
+ | आए जूड़ी न खाँसी | ||
+ | प्रीति है माँ- सी। | ||
+ | 10 | ||
+ | प्रेम की रज | ||
+ | आओ माथे लगाऊँ | ||
+ | पीर भगाऊँ। | ||
+ | 11 | ||
+ | तेरे मस्तक | ||
+ | प्रेम- रज मल दूँ | ||
+ | पुन: बल दूँ। | ||
+ | 12 | ||
+ | तुम्हीं परिधि! | ||
+ | बोलो कौन सी विधि | ||
+ | बदलूँ दिशा? | ||
+ | 3 | ||
+ | माथे लगाऊँ | ||
+ | प्रभु का प्रसाद है | ||
+ | प्रेम तुम्हारा! | ||
+ | 14 | ||
+ | मरुथल में | ||
+ | जैसे हो बरसात | ||
+ | तुम्हारा साथ! | ||
+ | 5 | ||
+ | आँखों को मूँद | ||
+ | मन- चातक चखे | ||
+ | प्रेम की बूँद। | ||
+ | 6 | ||
+ | वे स्वाति- बूँद! | ||
+ | कैसे रहे पृथक | ||
+ | प्यासा चातक। | ||
+ | 17 | ||
+ | प्रेम- सद्भाव! | ||
+ | पाटल जैसे भाव | ||
+ | पा तुम्हें खिले। | ||
+ | 18 | ||
+ | दिन- रात का | ||
+ | मेरा कार्य- कलाप | ||
+ | तुम्हारा जाप! | ||
+ | 19 | ||
+ | ईश न दूजा! | ||
+ | तुम्हें सर्वस्व माना | ||
+ | नेम से पूजा। | ||
+ | 20 | ||
+ | प्रिये! अशेष | ||
+ | प्रेम तुम्हारा श्लेष | ||
+ | जीने का अर्थ। | ||
+ | 21 | ||
+ | तुम्हारी प्रीत | ||
+ | रक्षक बन मीत | ||
+ | दिलाए जीत। | ||
+ | -0- | ||
</poem> | </poem> |
10:46, 31 मई 2022 के समय का अवतरण
1
करे निस्तार!
सच्चा सलाहकार
स्नेह तुम्हारा।
2
तुम्हें वन्दन!
है तरनतारन
तुम्हारा नेह।
3
कोरा जीवन-
तुमने रंग भरा
हो गया हरा!
4
बाँधो प्रेम का
कलाई पे कलावा
छोड़ो छलावा।
5
दुख से जना-
पीड़ा का कोप हरे
प्रिय- प्रार्थना!
6
प्रिय सींचते
मेरा मन- पाटल
मुझे दें बल।
7
पावन प्रीति!
प्रिय तेरी आरती
मैं उतारती।
8
कहीं अटकूँ-
तुम विश्वकोश- से
बचूँ दोष से!
9
लेती बलाएँ!!
आए जूड़ी न खाँसी
प्रीति है माँ- सी।
10
प्रेम की रज
आओ माथे लगाऊँ
पीर भगाऊँ।
11
तेरे मस्तक
प्रेम- रज मल दूँ
पुन: बल दूँ।
12
तुम्हीं परिधि!
बोलो कौन सी विधि
बदलूँ दिशा?
3
माथे लगाऊँ
प्रभु का प्रसाद है
प्रेम तुम्हारा!
14
मरुथल में
जैसे हो बरसात
तुम्हारा साथ!
5
आँखों को मूँद
मन- चातक चखे
प्रेम की बूँद।
6
वे स्वाति- बूँद!
कैसे रहे पृथक
प्यासा चातक।
17
प्रेम- सद्भाव!
पाटल जैसे भाव
पा तुम्हें खिले।
18
दिन- रात का
मेरा कार्य- कलाप
तुम्हारा जाप!
19
ईश न दूजा!
तुम्हें सर्वस्व माना
नेम से पूजा।
20
प्रिये! अशेष
प्रेम तुम्हारा श्लेष
जीने का अर्थ।
21
तुम्हारी प्रीत
रक्षक बन मीत
दिलाए जीत।
-0-