"समय / निकअलाय रेरिख़ / वरयाम सिंह" के अवतरणों में अंतर
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14:12, 10 जून 2022 के समय का अवतरण
भीड़ में चलना हमारे लिए कठिन हो गया है
कितनी ही शक्तियाँ हमारी शत्रु हैं
और कितनी ही आकाँक्षाएँ ।
उतर आई हैं अशुभ शक्तियाँ
पथिकों के कन्धों और चेहरों पर ।
हम निकल आएँगे किनारे की तरफ़
उस पहाड़ी पर जहाँ खड़ा है एक प्राचीन स्तम्भ,
हम बैठेंगे वहाँ ।
उतर आएँगी सारी शक्तियाँ
और हम प्रतीक्षा करेंगे ।
यदि पावन चिह्नों के विषय में
कोई समाचार मिले
तो हम भी प्रयास करेंगे ।
और यदि कोई उन्हें हमारे पास लाया
तो हम सम्मानपूर्वक खड़े हो जाएँगे ।
हम देखेंगे आँखें खोलकर,
कान खोलकर सुनेंगे ।
हम समर्थ होंगे, कामना करेंगे
और निकल आएँगे बाहर जब आएगा वह
समय ।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल भाषा में पढ़िए
Николай Рерих
Время
В толпе нам идти тяжело.
Столько сил и желаний враждебных.
Спустились темные твари
на плечи и лица прохожих.
В сторону выйдем, там
на пригорке, где столб стоит
древний, мы сядем.
Пойдут себе мимо.
Все порожденья осядут внизу,
а мы подождем.
И если бы весть
о знаках священных возникла,
устремимся и мы.
Если их понесут,
мы встанем и воздадим почитание.
Зорко мы будем смотреть.
Остро слушать мы будем.
Будем мы мочь и желать
и выйдем тогда, когда —
время.