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"जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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12:03, 10 अगस्त 2006 का अवतरण
कवि: केदारनाथ अग्रवाल ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
- जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
- तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
- जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
- जो रवि के रथ का घोड़ा है
- वह जन मारे नहीं मरेगा
- नहीं मरेगा
- जो जीवन की आग जला कर आग बना है
- फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
- जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
- जो युग के रथ का घोड़ा है
- वह जन मारे नहीं मरेगा
- नहीं मरेगा