जठै थारी दवायती री सांनी रै समचै
म्हैं अर उडीक कबंध व्है जावां।
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'''खडल्याभूत :''' मेवाड़ में भीलां रै गवरी निरत में आवता अेक सांग रौ नांव, जिका आपरै पूरा डील माथै चारौ बांध नै आवै। खड़ सूं सिंणगार्योड़ा व्हैण सूं वै खड़ल्या भूत बाजै। रागसी जूंण रौ सांग है इण सारू भूत सागै लागै।
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