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"भोजवृक्ष / सिर्गेय येसेनिन / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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और सुबह की धूप सुस्त सी
 
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भोजवृक्ष की टाहनियों पर  
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उतर रही नई भोर  
 
उतर रही नई भोर  
  

09:40, 5 सितम्बर 2022 का अवतरण

मेरी खिड़की के पास लगा है
एक सफ़ेद भोजवृक्ष
बर्फ़ से ढका हुआ है
चाँदी से ज्यों मढ़ा हुआ है

उसकी कोमल शाखाओं पर
लटकी है बर्फ़ की झालर
फूली-फूली हैं टहनियाँ सफ़ेद
अटकी है फुंदनों में नज़र

खड़ा हुआ है भोजवृक्ष
सन्नाटे में गहरे
बर्फ़ के कण चमक रहे हैं
अंगारों जैसे सुनहरे

और सुबह की धूप सुस्त सी
फैल रही सब ओर
भोजवृक्ष की टहनियों पर
उतर रही नई भोर

1913

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
          Сергей Есенин
                 Береза

Белая береза
Под моим окном
Принакрылась снегом,
Точно серебром.

На пушистых ветках
Снежною каймой
Распустились кисти
Белой бахромой.

И стоит береза
В сонной тишине,
И горят снежинки
В золотом огне.

А заря, лениво
Обходя кругом,
обсыпает ветки
Новым серебром.

1913